Book Title: Agam Guna Manjusha
Author(s): Gunsagarsuri
Publisher: Jina Goyam Guna Sarvoday Trust Mumbai
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४१) ओहनिनुत्ति
२१]
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॥१|| चित्तं बालाईणं गहाय आपुच्छिऊण आयरिअं । जमलजणणीसरिच्छो निवेसई मंडली थेरो ॥२॥ जइ लुद्धो राइणिओ होइ अलुद्धोवि जोऽवि गीयत्यो। ओमोवि हुगीयत्थो मंडलिराइणि अलुद्धो उ॥३|| ठाण दिसि पगासणया भायण पक्खेवणा य भाव गुरू । सो चेव य आलोगो नाणत्तं तद्दिसाठाणे ॥४॥ निक्खमपवेस मोत्तुं पढमसमुद्दिस्सगाण ठायंति । सज्झाए परिहाणी भावासन्नेवमाईया॥२८१॥ भा० । पुव्वमुहो राइणिओ एक्को य गुरूस्स अभिमुहो ठाइ। गिण्हइ व पणामेइ व अभिमुहो इहरहाऽवन्ना ।।२।। भा० । जो पुण हवेज खमओ अतिउच्चाओ व सो बहिं ठाइ । पढमसमुद्दिठ्ठो वा सागारियरक्खणठ्ठाए।।५।। एक्केक्कस्स य पासंमि मल्लयं तत्थ खेलमुग्गाले। कठ्ठऽठ्ठिए व छुब्भइ मा लेवकडा भवे वसही।६।। मंडलिभायणभोयण गहणं सोही य कारणुव्वरिते। भोयणविही उ एसो भणिओ तेल्लुक्कदंसीहिं ||७|| मंडलि अहराइणिआ सामायारी य एस जा भणिआ। पुव्वं तु अहाकडगा मुच्चंति तओ कमेणियरे ॥२८३||भा०। निद्धमहुरणि पुव्वं पित्ताईपसमणठ्या भुंजे । बुद्धिबलवड्ढणठ्ठा दुक्खं खु विकिंचिउं निद्धं ॥४॥ अह होज्ज निद्धमहुराणि अप्पपरिकम्मसपरिकम्मेहिं । भोत्तूण निद्धमहुरे फुसिअ करे मुंचऽहागडए ।।३।। कुक्कुडिअंडगमित्तं अहवा खुड्डागलंबणासिस्स । लंबणतुल्ले गिण्हइ अविगियवयणो य राइणिओ ||६|| गहणे पक्खेवंमि अ सामायारी पुणो भवे दुविहा । गहणे पायंमि भवे वयणे पक्खेवणा होइ ।।७।। कडपयरच्छेएणं भोत्तव्वं अहव सीहखइएणं । एगेहि अणेगेहिवि वज्जेत्ता धूमइंगालं ।।८।। असुरसुरं अचवचवं अदुयमविलंबिअं अपरिसाडिं। मणवयणकायगुत्तो भुंजइ अह पक्खिवणसोहिं ।।२८९||भा०। उग्गमउप्पायणासुद्धं, एसणादोसवज्जिअं । साहारणं अयाणतो, साहू हवइ असारओ ॥८॥ उग्गमउप्पायणासुद्ध, एसणादोसवज्जिअं । साहारणं वियाणंतो, साहू हवइ ससारओ ॥९॥ उग्गमउप्पायणासुद्धं, एसणादोसवज्जिअं । साहारणं अयाणतो, साहू कुणइ तेणिों ।।५७०|| उम्गमउप्पायणासुद्धं, एसणादोसवज्जिअं । साहारणं वियाणंतो, साहू पावइ निज्जरं ॥१॥ अंतंतं भोक्खामित्ति बेसए भुंजए य तह चेव । एस ससारनिविठ्ठो ससारओ उठ्ठिओ साहू ।।२।। एमेव य भंगतिअं जोएयव्वं तु सार नाणाई । तेण सहिओ ससारो समुद्दवणिएण दि©तो ।।३।। जत्थ पुण पडिग्गहगो होज्ज कडो तत्थ छुब्भए अन्नं । मत्तगगहिउव्वरिअं पडिग्गहे जं असंस→ ||४|| जं पुण गुरूस्स सेसं तं छुब्भइ मंडलीपडिग्गहके । बालादीण व दिज्जइन छुब्भई सेसगाणऽहि ॥५॥ सुक्कोल्लपडिग्गहगे विआणिआ पक्खिवे दवं सुक्के । अभतट्ठिआण अठ्ठा बहुलंभे जं असंसर्छ ।।६।। सोही चउक्क भावे विगइंगालं च विगयधूमं च । रागेण सयंगालं दोसेण सधूमगं होइ ||७|| जत्तासाहणहेउं आहारेति जवणठ्या जइणो ।छायालीसं दोसेहिं सुपरिसुद्धं विगयरागा ॥८॥ हियाहारा मियाहारा, अप्पाहारा य जे नरा। न ते विज्जा तिगिच्छंति, अप्पाणं ते तिगिच्छगा ॥९॥ छण्हमन्नयरे ठाणे कारणंमि उ आगए। आहारेज्ज (उ) मेहावी संजए सुसमाहिए ॥५८०|| वेयण वेयावच्चे इरियठ्ठाए य संजमठ्ठाए । तह पाणवत्तियाए छठं पुण धम्मचिंताए ।।१।। नत्थि छुहाएँ सरिसया वेयण भुंजेज्ज तप्पसमणठ्ठा । छाओ वेयावच्चं
न तरइ काउं अओ भुंजे ||२९०|| भा० । इरियं नवि सोहेइ पेहाईयं च संजमं काउं । थामो वा परिहायइ गुणऽणुप्पेहासुय असत्तो॥१॥ भा०। अहवा न कुज्ज आहारं, 5 छहि ठाणेहिं संजए । पच्छा पच्छिमकालंमि, काउं अप्पक्खमं खमं ॥२॥ आर्यके उवसग्गे तितिक्खया बंभचेरगुत्तीए। पाणदया तवहेउं सरीरवोच्छेयणठ्ठाए ॥२९२।। म भा० । आयंको जरमाई राया सन्नायगा व उवसग्गा । बंभवयपालणठ्ठा पाणदया वासमहियाई ॥३॥ तवहेउ चउत्थाई जाव उ छम्मासिओ तवो होइ । छठं
सरीरवोच्छेयणठ्या होयऽणाहारो॥२९४||भा० । एएहिं छहिं ठाणेहिं, अणाहारो य जो भवे । धम्मं नाइक्कमे भिक्खू, झाणजोगरओ भवे ।।३।। भुंजतो आहारं गुणोवयारं सरीरसाहारं । विहिणा जहोवळं संजमजोगाण वहणट्ठा ॥४॥ भुत्तुठ्ठियावसेसो तिलंबणा होइ संलिहणकप्पो। अपहुप्पन्ते अन्नंपि छोढुं ता लंबणे ठवए ॥५॥ संदिठ्ठा संलिहिउँ पढम कप्पं करेइ कलुसेणं । तं पाउं मुहमासे बितियच्छदवस्स गिण्हति ।।६।। दाऊण बितियकप्पं बहिया मज्झठुिआ उ दवहारी। तो देति तइयकप्पं दोण्हं दोण्हं तु आयमणं ।।७|| होज सिआ उद्धरियं तत्थ य आयंबिलाइणो हुज्जा। पडिदसिअ संदिठ्ठो वाहरइ तओ चउत्थाई ||८|| मोहचिगिच्छ विगिळं
गिलाण अत्तठ्ठियं च मोत्तूणं । सेसे गंतुंभणई आयरिआ वाहरंति तुमं ।।९।। अपडिहणतो आगंतु वंदिउ भणइ सो उ आयरिए। संदिसह भुंज जं सरति तत्तियं सेस तस्सेव र ॥५९०।। अभणंतस्स उ तस्सेव सेसओ होइ सो विवेगो उ। भणिओ तस्स उगुरूणा एसुवएसो पवयणस्स ||१|| भुत्तंमि पढमकप्पं करेमि तस्सेव देति तं पायं ।
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