Book Title: Agam Guna Manjusha
Author(s): Gunsagarsuri
Publisher: Jina Goyam Guna Sarvoday Trust Mumbai
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(४१) पिंडनिनुत्ति
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पंचपुंडमाइंसु फालण दिढे जइ नेव तो तुहं अतितहं कइ वा॥३४||भा.३४ ४७५) जाई कुल गण कम्मे सिप्पे आजीवणा उ पंचविहा सूयाएँ असूयाएँ व अप्पाण कहेहि एक्केक्के ।।४३७||-४३७ ४७६) जाईकुले विभासा गणो उमल्लाइ कम्म किसिमाई तुण्णाइ सिप्पऽणावज्जगं च कम्मेयराऽऽवज्ज ।।४३८||-४३८४७७) होमायवितहकरणे नज्जइ जह सोत्तियस्स पुत्तोत्ति वसिओ वेस गुरुकुले आयरियगुणे व सूएइ ॥४३९||-४३९४७८) सम्ममसम्मा किरिया अणेण ऊणाऽहिया व विवरीया समिहामंताहुइठाण जागकाले य घोसाई॥४४०||-४४०४७९) उग्गाइकुलेसुविएवमेव गणमंडलप्पवेसाई देउलदरिसणभासाउवणयणे दंडमाइया ॥४४१||४४१ ४८०) कत्तरि पओअणावेक्खवत्थुबहुवित्थरेसु एमेव कम्मेसु य सिप्पेसु य सम्ममसम्मेसु सूईयरा ॥४४२।।-४४२ ४८१) समणे महाणि किवणे अतिही साणे य होइ पंचमए वणि जायणत्ति वणिओ पायप्पाणं वणेइत्ति ॥४४३||-४४३ ४८२) मयमाइवच्छगंपिव वणेइ आहारमाइलोभेणं समणेसु माहणेसु य किविणाऽतिहिसाणभत्तेसुं॥४४४॥-४४४४८३) निग्गंथ सकक् तावस गेरुय आजीव पंचहा समणा तेसि परिवेसणाए लोभेण वणिज्ज को अप्पं ॥४४५||-४४५ ४८४) भुंजंति चित्तकम्मट्ठिया व कारुणिय दाणरुइणो य अवि कामगद्दभेसुविन नस्सई किं पुण जईसु ॥४४६।।-४४६४८५) मिच्छत्तथिरीकरणं उग्गमदोसा य तेसु वा गच्छे चडुकारऽदिन्नदाणा पच्चत्थिग मा पुणो इंतु ॥४४७||-४४७ ४८६) लोयाणुग्गहकारिसु भूमीदेवेस बहुफलं दाणं अवि नाम बंभबंधुसु किं पुण छक्कम्मनिरएसु ॥४४८॥-४४८४८७) किवणेसु दुम्मणे ब्बले सुय अबंधवायंकजुंगियंगेसुं पूयाहिज्जे लोए दाणपडागं हरइ दितो ।।४४९।।-४४९४८८) पाएण देइ लोगो उवगारिसु परिचिएसु झुसिएसु जो पुण अद्धाखिन्नं अतिहिं पूएइ तं दाणं ॥४५०||-४५० ४८९) अवि नाम होज्ज सुलभो गोणाईणं तणाइ आहारो छिच्छिक्कारहयाणं न हुसुलहोहोइ सुणहाणं॥४५||-४५०४९०) केलासभवणा एए आगया गुच्झगा महिं चरंति जक्खरुवेणं पुयाऽपूया हियाऽहिया ।।४५२||४५२ ४९१) एएण मज्झ भावो दिवो लोए पणामहेज्जमि एक्केक्के पुव्वुत्ता भद्दगपंताइणो दोसा ॥४५३||-४५३४९२) एमेव कागमाई सामग्गहणेण सूइया होति जो वा जंमि पसत्तो वणइ तहिं पुट्ठऽपुट्ठो वा ॥४५४||-४५४४९३) दाणं न होइ अफलं पत्तमपत्तेसु सन्निजुज्जतं इय विभणिएऽवि दोसा पसंसओ किं पुण अपत्ते ॥४५५||४५५४९४) भणइ नाहं वेज्जो अहवाऽवि कहेइ अप्पणो किरियं अहवावि विजयाए तिविह तिगिच्छा मुणेयव्वा ॥४५६||-४५६ ४९५) भिक्खाइ गओ रोगी किं विज्जोऽहंति पुच्छिओ भणइ अत्थावत्तीऍ कया अबुहाणं बोहणा एवं ॥४५७।-४५७४९६) एरिसयं चिय वा दुक्खं भेसज्जेण अमुगेण पउणं मे सहसुप्पन्नं व रुयं वारेमो अट्ठमाईहिं ।।४५८||-४५८ ४९७) संसोधण संसमणं नियाणपरिवज्जणं च जं तत्थ आगंतु धाउखोभे य आमए कुणइ किरियं तु ॥४५९||-४५९ ४९८) अस्संजमजोगाणं पसंधणं कायधाय अयगोलो दुब्बलवग्धा हरणं अच्चुदये गिण्हणुड्डाहे ||४६०||-४६०४९९) हत्थकप्प गिरिफुल्लिय रायगिहं खलु तहेव चंपाय कडधयपुन्ने इट्टग लड्डग तह सीहकेसरए॥४६१||-४६१५००) विज्जातवप्पभावं रायकुले वाऽवि वल्लभत्तं से नाउं ओरस्सबलं जो लब्भड़ देह भया कोहपिंडो सो ||४६२।।-४६२ ५०१) अन्नेसि दिज्माणे जायंतो वा अलद्धिओ कुप्पे कोहफलंमिऽवि दिढे जो लब्भइ कोहपिंडो सो ॥४६३||-४६३.५०२) करडुयभत्तमलद्धं अन्नहिं दाहित्थ एव वच्चंतो थेरा भोयण तइए आइक्खण खामणा दाणं ।।४६४।।-४६४५०३) उच्छाहिओ परेण व लद्धिपसंसाहिं वा समुत्तइओ अवमाणिओ परेण य जो एसइ मानपिंडो सो॥४६५।।-४६५ ५०४) इट्टगछणंमि परिपिडियाण उल्लाव को नु हु पगेव आणिज्ज इट्टगा खुड्डो पच्चाह आणेमि ॥४६६।-४६६५०५) जइविय ता पज्जत्ता अगुलधयाहिं न ताहिं णे कज्जं जारिसियाओ इच्छह ता आणेमित्ति निक्खंतो ॥४६७||-४६७५०६) ओहासिय पडिसिद्धा भणइ अगारि अवस्सिमा मज्झं जइ लहसि तो तं मे नासाए कुणसुमोयंति सा आह॥४६८॥-४६८५०७) कस्स घर पुच्छिऊणं परिसाए अमुउ कइरउ पुच्छे किं तेणऽम्हे जायसु सो किविणो स दाहिइ न तुज्झं ।।४६९।।-४६९ ५०८) दाहामि तेण भणिए जइ न भवसि छण्हमेसि पुरिसाणं अन्नयरो तो तेऽहं परिसाममि पणया जाए मि
॥४७०।- ४७०५०९) सेयंगुलि बगुड्डावे किंकरे पहायए तहा गिद्धावरंखि हद्दन्नए य पुरिसाहमा छा उ॥४७१||-४७१ ५१०) जायसु न एसिरोऽहं इट्टगा देहि र पुव्वमइगंतुं माला उत्तारि गुलं भोएमि दिएत्ति आरुढा ।।४७२।।-४७२५११) सिइअवणण पडिलाभण दिस्सियरी बोलमंगुली नासं दुण्हेगयरपओसो आयविवत्ती Mero 5955555555555 श्री आगमगुणमजूषा - १६१६॥5॥555555555555555555555OOK
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