Book Title: Agam Guna Manjusha
Author(s): Gunsagarsuri
Publisher: Jina Goyam Guna Sarvoday Trust Mumbai
View full book text
________________
(४१) पिंडनिज्जुत्ति
य उड्डाहो ॥४७३॥। ४७३५१२) रायगिहे धम्मरुई असाढभूई य खुडओ तस्स रायनडगेहपविसणं संभोइय मोयए लंभो ॥ ४७४ -४७४५१३) आयरियउवज्झाए संघाडगकाणखुज्जतद्दोसी नडपासण पज्जत्तं निकायण दिने दिने दानं ॥ ४७५॥ - ४७५ ५१४) धूयदुए संदेसो दान सिणेह करणं रहे गह करणं लिंग मुयत्ति गुरुसिट्ठ विवाहे उत्तमा पगई ||४७६ ।। ४७६ ५१५) रायधरे य कयाई निम्महिलं नाडगं नडागच्छी ता य विहरंमि मत्ता उवरि गिहे दोवि पासुत्ता ||४७७॥ ४७७५१६) वाघाएण नियत्तो दिस्स विचेला विराग संबोही इंगियनाए पुच्छा पजीवणं रट्ठपालति ॥४७८॥ ४७८ ५१७) इक्खागवंस भरहो आयंसधरे य केवलालोओ हाराइखिवण गहणं उवसग्ग न सो नियत्तोत्ति ॥ ४७९ ॥ ४७९५१८) तेण समं पव्वइया पंच नरसयत्ति नाडए डहणं गेलन्नखमगपाहुणथेरादिट्ठा य बीयं तु ॥ ४८० ॥ - ४८० ५१९) लब्भंतंपि न गिण्हइ अन्नं अमुगंति अज्ज धेच्छामि भद्दरसंति व काउं गिण्हड खद्धं सिणिद्धाई ॥ ४८१ ॥ - ४८१५२०) चंपा छणंमि छिच्छामि मोयए तेवि सीहकेसरए पडिसेह धम्मलाभं काऊणं सीहकेसरए ||४८२ ॥ - ४८२५२१) सड्ढऽड्ढरत्तकेसरभायणभरणं च पुच्छ पुरिमड्ढे उवओग संत चोलो यण साहुत्ति विगिंचणे नाणं ||४८३ ।। - ४८३५२२) दुविहो उ संथवो खलु संबंधी वयणसंथवो चेव एक्केक्कोविय दुविहो पुव्विं पच्छा य नायव्वो ||४८४॥ - ४८४ ५२३) मायपिइ पुव्वसंथव सासूसुसराइयाण पच्छा उ गिहि संथव संबंधं करेइ पुव्वं च पच्छा वा ॥४८५।। ४८५ ५२४) आयवयं च परवयं नाउं संबंधए तयणुरुवं मम माया एरिसिया ससा व धूया व नत्ताई ||४८६ ॥ - ४८६ ५२५) अद्धिई दिपिण्हव पुच्छा कहणं ममेरिसी जणणी थणखेवो संबंधो विहवासुण्हाइदाणं च ||४८७||-४८७ ५२६) पच्छासंथवदोसा सासू विहवादिधूयदानं च भज्जा ममेरिसिच्चिय सज्जो धाओ व भंगो वा ॥४८८॥ ४८८ ५२७) मायावी चडुयारी अम्हं ओहावणं कुणइ एसो निच्छुभणाई पंतो करिज्ज भद्देसु पडिबंधो ॥ ४८९ ॥ ४८९ ५२८) गुणसंथवणे पुव्विं संतासंतेण जो थुणिज्जाहि दायारमदिन्नंमी सो पुव्विंसंथवो हवइ ॥४९०॥-४९० ५२९) एसो सो जस्स गुणा वियरंति अवारिया दसदिसासु इहरा कहासु सुणिमो पच्चक्खं अज्ज दिट्ठो सि ॥ ४९१ ॥ - ४९१५३०) गुणसंथवेण पच्छा संतासंतेण जो थुणिज्जाहि दायारं दिन्नंमी सो पच्छासंथवो होइ ॥ ४९२ ॥ - ४९२५३१) विमलीकयऽम्ह चक्खू जहत्थया वियरिया गुणा तुज्झं असि पुरा मे संका संपय निस्संकियं जाय || ४९३॥ - ४९३५३२) विज्जामंतपरुवण विज्जाए भिक्खुवासओ होइ मंतंमि सीसवेयण तत्थ मुरुंडेण दिट्टंतो ॥४९४॥ ४९४५३३) परिपिंडणमुल्लावो अइपंतो भिक्खुवासओ दावे जइ इच्छइ अनुजाणह घयगुलवत्थाणि दावेमि ||४९५ ॥ - ४९५ ५३४) गंतुं विज्जामंतणं किं देमि धयं गुलं च वत्थाई दिन्ने पडिसाहरणं केणं हियं केण मुट्ठो मि ||४९६ || ४९६५३५) पडिविज्जथंभणाई सो वा अन्नो व से करिज्जाहि पावजीवीमाइई कम्मणगारी य गहणाई ।।४९७||-४९७ ५३६) जह जह पएसिणी जाणुगंमि पलित्तओ भमाडेइ तह तह सीसे वियंणा पणस्सइ मुरुंडरायस्स ॥ ४९८ ॥ ४९८ ५३७) पडिमंतथंभणाई सो वा अन्नो व से करिज्जाहि पावाजीवियमाई कम्मणगारी भवे बीयं ॥ ४९९ ॥ ४९९ ५३८) चुन्ने अंतद्धाणे चाणक्के पायलेवणे समिए मूल विवाहे दो दंडिणी उ आयाणपरिसाडे ॥५००।- ५०० ५३९) जंघाहीणा ओमे कुसुमपुरे सिस्सजोग रहकरणं खुड्डदुगंजणसुणणा गमणं देसंतरे सरणं ॥ ३५ ॥ भा. - ३५५४०) भिक्खे परिहायंते थेराणं तेसि ओमे दिंताणं सहभुज्ज चंदगुत्ते ओमोयरियाए दोबल्लं ||३६|| भा. - ३६५४१) चाणक्कपुच्छ इट्टालचुण्णदारं पिहित्तु धूमे य दटुं कुच्छ पसंसा थेरसमीवे उवालंभो ||३७|| भा. - ३७५४२) जे विज्जमंतदोसा ते च्चिय वसिकरणमाइचुन्नेहिं एगमणेग पओसं कुज्जा पत्थारओ वावि ॥ ५०१ ॥ - ५०१५४३) सूभगदुब्भग्गकरा जोगा आहारिमा य इयरे य आघंसधूववासापायपलेवाइणो इयरे ॥ ५०२॥ -५०२५४४) नइकण्हबिन्न दीवे पंचसया तावसाण निवसंति पव्वदिवसेसु कुलवई पालेवुत्तार सक्कारे ।।५०३ ॥ ५०३५४५) जण सावगाण खिंसण समियऽक्खण माइठाण लेवेण सावय पयत्तकरणं अविणय लोए चलणधोए ॥ ५०४ ॥ - ५०४ ५४६) पडिलाभिय वच्चंता निब्बुड नइकूल मिलण समियाऽऽओ विम्हिय पंचसया तावसाण पव्वज्ज साहा य ।। ५०५।। ५०५ ५४७) अकुमार खयं जोणी विवरीयट्ठा निवेसणं वावि गम्मपए पायं वा जो कुव्वइ मूलकम्मं तं ||६|| प. ६ ५४८) अधिई पुच्छा आसन्न विवाहे भिन्नकन्नसाहणया आयमणपियण ओसह अक्खय जज्जीवअहिगरणं ॥ ५०६ ॥ - ५०६ ५४९) जंघा परिजिय सड्ढी अदिइ आणिज्जए मम खवत्ती जोगो जोणुग्घाडण पडिसेह पओस उड्डाहो || ५०७१-५०७ HORO श्री आगमगुणमंजूषा - १६१७ 109
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
[४१]
फ्र
YO
Page Navigation
1 ... 1734 1735 1736 1737 1738 1739 1740 1741 1742 1743 1744 1745 1746 1747 1748 1749 1750 1751 1752 1753 1754 1755 1756 1757 1758 1759 1760 1761 1762 1763 1764 1765 1766 1767 1768 1769 1770 1771 1772 1773 1774 1775 1776 1777 1778 1779 1780 1781 1782 1783 1784 1785 1786 1787 1788 1789 1790 1791 1792 1793 1794 1795 1796 1797 1798 1799 1800 1801 1802 1803 1804 1805 1806 1807 1808 1809 1810 1811 1812 1813 1814 1815 1816 1817 1818 1819 1820 1821 1822 1823 1824 1825 1826 1827 1828 1829 1830 1831 1832 1833 1834 1835 1836 1837 1838 1839 1840 1841 1842 1843 1844 1845 1846 1847 1848 1849 1850 1851 1852 1853 1854 1855 1856 1857 1858 1859 1860 1861 1862 1863 1864 1865 1866 1867 1868