Book Title: Agam Guna Manjusha
Author(s): Gunsagarsuri
Publisher: Jina Goyam Guna Sarvoday Trust Mumbai
View full book text
________________
FOR95555555555595
विश दसवेयालिय (तइयं मूलसुत) अ.९,१०/उ. ३.४
[१५]
555555555555Sexong
reso
乐纸$乐乐乐乐55玩乐乐听听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐明乐%乐为乐明明明明明明明明明明明明
सहेज कंटए वईमए कण्णसरे, स पुज्जो ||६|| ४९८. मुहुत्तदुक्खा हु हवंति कंटया अओमया, ते वि तओ सुउद्धरा । वायादुरुत्ताणि दुरुद्धराणि वेराणुबंधीणि म महब्भयाणि ॥७॥ ४९९. समावयंता वयणाभिघाया कण्णंगया दुम्मणियं जणंति। धम्मो ति किच्चा परमग्गसूरे जिइंदिए जो सहई, स पुज्जो ॥८॥ ५००. अवण्णवायं
च परम्मुहस्स पच्चक्खओ पडिणीयं च भासं । ओहारिणिं अप्पियकारिणिं च भासं न भासेज्ज सया, स पुज्जो ॥९॥५०१. अलोलुए अक्कुहए अमायी अपिसुणे यावि अदीणवित्ती । नो भावए नो वि य भावियप्पा अकोउहल्ले य सया, स पुज्जो ||१०|| ५०२. गुणेहिं साहू, अगुणेहऽसाहू गेण्हाहि साहूगुण, मुंचऽसाहू । वियाणिया अप्पगमप्पएणं जो राग-दोसेहिं समो, स पुज्जो ।।११।। ५०३. तहेव डहरं व महल्लगं वा इत्थी पुमं पव्वइयं गिहिं वा । नो हीलए नो वि य खिंसएज्जा थंभं च कोहं च चए, स पुज्जो||१२|| ५०४. जे माणिया सययं माणयंति जत्तेणं कन्नं व निवेसयंति। ते माणए माणरिहे तवस्सी जिइंदिए सच्चरए, स पुज्जो ॥१३॥ ५०५. तेसिं गुरूणं गुणसागराणं सोचाण मेहावि सुभासियाई । चरे मुणी पंचरए तिगुत्तो चउक्कसायावगए, स पुज्जो ॥१४॥ ५०६. गुरुमिह सययं पडियरिय मुणी जिणवयनिउणे अभिगमकुसले । धुणिय रय-मलं पुरेकडं भासुरमउलं गई गय ||१५|त्ति बेमि★★★| विणयसमाहीए तईओ उद्देसो समत्तो ॥९.३॥ ★★★ विणयसमाहीए चउत्थो उद्देसो *** ५०७. सुयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणयसमाहिट्ठाणा पण्णत्ता ॥१॥ ५०८. कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणयसमाहिट्ठाणा पण्णत्ता ? ||२|| ५०९. इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणयसमाहिट्ठाणा पण्णत्ता। तं जहा विणयसमाही १ सुयसमाही २ तवसमाही ३ आयारसमाही ४ ॥३॥ ५१०. विणए १ सुए २ तवे ३ य आयारे ४ निच्चं पंडिया। अभिरामयंति अप्पाणं जे भवंति जिइंदिया ॥४॥ ५११. चउब्विहा खलु विणयसमाही भवइ । तं जहा अणुसासिजतो सुस्सूइ १ सम्म संपडिवज्जइ २ वेयमाराहइ ३ न य भवइ अत्तसंपग्गहिए चउत्थं पयं भवइ ४ ॥५॥ ५१२. भवइ य एत्थ सिलोगो पेहेइ हियाणुसासणं १ सुस्सूई २ तं च पुणो अहिट्ठए ३ । न य माणमएण मज्जई ४ विणयसमाही आययट्ठिए १ ॥६॥ ५१३. चउब्विहा खलु सुयसमाही भवइ । तं जहा 'सुयं मे भविस्सई' त्ति अज्झाइयव्वं भवइ १ 'एगग्गचित्तो भविस्सामि' त्ति अज्झाइयव्वं भवइ २ 'अप्पाणं ठावइस्सामि' त्ति अज्झाइयव्वं भवइ ३ 'ठिओ परं ठावइस्सामि' त्ति अज्झाइयव्वं भवइ चउत्थं पयं भवइ ४ ||७|| ५१४. भवइ य एत्थ सिलोगो नाण१ मेगग्गचित्तो २ य ठिओ ३ ठावयई परं ४ । सुयाणि य अहिज्जित्ता रओ सुयसमाहिए २॥८॥ ५१५. चउम्विहा खलु तवसमाही भवइ । तं जहा नो इहलोगट्ठयाए तवमहिद्वेज्जा १ नो परलोगट्ठयाए तवमहिढेज्जा २ नो कित्ति-वण्ण-सद्द-सिलोगट्ठयाए तवमहिढेजा ३ नऽन्नत्थ निज्जरट्ठयाए तवमहिढेज्जा चउत्थं पयं भवइ ४॥९॥ ५१६. भवइ य एत्थ सिलोगो विविहगुणतवोरए य निच्चं भवइ निरासए निज्जरट्ठिए। तवसा धुणइ पुराणपावगं जुत्तो सया तवसमाहिए ||१०|| ५१७. चउव्विहा खलु आयारसमाही भवइ । तं जहा नो इहलोगट्ठयाए आयारमहिद्वेज्जा १ नो परलोगट्ठयाए आयारमहिद्वेज्जा २ नो कित्ति-वण्णसद्दसिलोगट्ठयाए आयारमहिढेजा ३ नऽन्नत्थ आरहंतेहिं हेऊहिं आयारमहिट्ठज्जा चउत्थं पयं भवई ४ ॥११॥ ५१८. भवइ य एत्थ सिलोगो जिणवयणरए अतितिणे पडिपुण्णाययमाययट्ठिए । आयारसमाहिसंवुडे भवइ य दंते भावसंधए ४ ॥१२॥ ५१९. अभिगम चउरो समाहिओ सुविसुद्धो सुसमाहियप्पओ। विउलहियसुहावहं पुणो कुव्वइ सो पयखेममप्पणो॥१३|| ५२०. जाई-मरणाओ मुच्चई, इत्थंथं च चएइ सव्वसो। सिद्धे वा भवइ सासए, देवे वा अप्परए महिड्ढिए |१४||त्ति बेमि || |विणयसमाहीए चउत्थो उद्देसो समत्तो ||९.४॥★★★||विणयसमाहिअज्झयणं नवमं समत्तं ॥९॥★★★ १० दसम सभिक्खूअज्झयणं ★★★ ५२१. निक्खम्ममाणाय बुद्धवयणे निच्चं चित्तसमाहिओ भवेज्जा । इत्थीण वसं न यावि गच्छे वंतं नो पडियावियति जे, स भिक्खू ॥१॥ ५२२. पुढविं न खणे न खणावए, सीओदगं पिए न पियावए । अगणिसत्थं जहा सुनिसियं तं न जले न जलावए जे, स भिक्खू ||२|| ५२३. अनिलेण न वीए न वीयावए हरियाणि न छिदै न छिंदावए । बीयाणि सया विवज्जयंतो, सच्चित्तं नाऽऽहारए जे, स भिक्खू ॥३॥ ५२४. वहणं तस-थावराण होइ पुढवि-तण
明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明與乐乐乐乐听听听听听听听GE
Pro:55555
55555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १६३७55555555555
5
A
Page Navigation
1 ... 1754 1755 1756 1757 1758 1759 1760 1761 1762 1763 1764 1765 1766 1767 1768 1769 1770 1771 1772 1773 1774 1775 1776 1777 1778 1779 1780 1781 1782 1783 1784 1785 1786 1787 1788 1789 1790 1791 1792 1793 1794 1795 1796 1797 1798 1799 1800 1801 1802 1803 1804 1805 1806 1807 1808 1809 1810 1811 1812 1813 1814 1815 1816 1817 1818 1819 1820 1821 1822 1823 1824 1825 1826 1827 1828 1829 1830 1831 1832 1833 1834 1835 1836 1837 1838 1839 1840 1841 1842 1843 1844 1845 1846 1847 1848 1849 1850 1851 1852 1853 1854 1855 1856 1857 1858 1859 1860 1861 1862 1863 1864 1865 1866 1867 1868