Book Title: Agam Guna Manjusha
Author(s): Gunsagarsuri
Publisher: Jina Goyam Guna Sarvoday Trust Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 1714
________________ (४१) ओहनिज्जुत्ति फ्रफ़ फ्रफ़ फ्रॐ ॐ ॐ ॐ ॐ होतऽणुव्वाणा ॥१॥ तरूणित्थि एक्कभागे पव्वाणे होइ गहण गिम्हासु | हेमंते दोसु भवे तिसु पव्वाणेसु वासासु ||२|| एमेव मज्झिमाए आढत्तं दोसु ठायए चउसु । तिसु आढत्तं थेरीनवर ठाणेसु पंचसु उ ॥ ३ ॥ एमेव होइ पुरिसो दुगाइछठ्ठाणपज्जवसिएसुं। अपुमं तु तिभागाइं सत्तमभागे अवसिते उ ||४|| दुविहो य होइ भावो लोइय लोउत्तरो समासेणं । एक्किक्कोविय दुविहो पसत्थओ अप्पसत्थो य ॥५॥ सज्झिलगा दो वणिया गामं गंतूण करिसणारंभो। एगस्स देहमंडणबाउसिआ भारिया अलसा ||६|| मुहधोवण दंतवणं अद्दागाईणं कल्ल आवासं । पुव्वण्हकरणमप्पण उक्कोसयरं च मज्झण्हे ||७|| तणकट्टहारगाणं न देइ न य दासपेसवग्गस्स । न य पेसणे निउंजइ पलाणि हिय हाणि गेहस्स ॥८॥ बिइयस्स पेसवग्गं वावारे अन्नपेसणे कम्मे । काले देहाहारं सयं च उवजीवई इड्ढी || ९ || वन्नवलरूवहेउं आहारे जो तुलाभि लब्भंते । अतिरेगं न उ गिण्हइ पाउग्गगिलाणमाईण || ५०० || जह सा हिरण्णमाइसु परिहीणा होइ दुक्खआभागी । एवं तिगपरिहीणा साहू दुक्खस्स आभागी ||१|| आयरियगिलाणठ्ठा गिण्ह न महंति एव जो साहू । नो वन्नरूवहेउं आहारे एस उ पसत्थो ॥ २॥ उग्गमउप्पायणएसणाऍ बायाल होति अवराहा । सोहे समुयाणं पडुपन्ने वच्चए वसहिं ॥ ३॥ सुन्नघरदेउले वा असई य उवस्सयस्स वा दारे । संसत्तकंटगाई सोहेउमुवस्सगं पविसे ॥ ४ ॥ संसत्तं तत्तो च्चिय परिवेत्ता पुणो दवं गिण्हे। कारण मत्तयगहियं पडिग्गहे छोढु पविसणया ||५|| गामे य कालमाणे पहुच्चमाणे हवंति भंगऽठ्ठ। काले अपहुप्पंते नियत्तई सेसए भयणा ||६|| अण्णं च वए गामं अण्णं भाणं व गेण्ह सइ काले । पढमे बितिए छप्पंचमे य भय सेस य नियत्ते ||७|| वोसिठुमागयाणं उब्वासिय मत्तए य भूमितियं । पडिलेहियमत्थमणं सत्यमिए जहन्नो उ ॥ ८॥ भुत्ते वियारभूमी गयागयाणं तु जह य ओगाहे। चरमाएँ पोरिसीए उक्कोसो सेस मज्झिमओ ||९|| पायप्पमज्जण निसीहिया य तिन्नि उ करे पवेसंमि। अंजलि ठाणविसोही दंडग उवहिस्स निक्खेवो ॥५१०॥ एवं पडुपन्ने पविसओ उ तिन्नि व निसीहिया होति । अग्गद्दारे मज्झे पवेस पाए य सागरिए || २६२|| भा० । हत्थुस्सेहो सीसप्पणामणं वाइओ नमोक्कारो । गुरुभायणे पणामो वायाऍ नमो न उस्सेहो ॥ ३॥ उवरिं हेठ्ठा य पमज्जिऊण लठ्ठेि ठवेज्ज सठ्ठाणे | पट्टं उवहिस्सुवरिं भायणवत्थाणि भाणेसु ॥४॥ जइ पुण पासवणं से हवेज्ज तो उग्गहं सपच्छागं । दाउँ अन्नस्स सचोलपट्टओ काइयं निसिरे || २६५॥ भा० | चउरंगुल मुहपत्ती उज्जुयए वामहत्थि रयहरणं । वोसठ्ठचत्तदेहो काउस्सग्गं करेज्जाहि || १ || चउरंगुलमप्पत्तं जाणुगहेठ्ठा छिवोवरिं नाहिं । उभओ कोप्परधरिअं करेज्न पट्टं च पडलं वा ||६|| भा० । पुव्वुद्दिठ्ठे ठाणे ठाउं चउरंगुलंतरं काउं। मुहपोत्ति उज्जुहत्थे वामंमि य पायपुंछणयं ॥२॥ काउस्सग्गंमि ठिओ चिंते समुयाणिए अईआरे । जा निग्गमप्पवेसो तत्थ उ दोसे मणे कुज्जा ||३|| ते उ पडिसेवणाए अणुलोमा होति वियडणाए य । पडिसेववियडणाए एत्थ उ चउरो भवे भंगा ॥४॥ वक्खित्तपराहुत्ते पत्ते मा कयाइ आलोए । आहारं च करेंतो नीहारं वा जइ करेइ ||५|| कहणाईवक्खित्ते विकहाइ पमत्त अन्नओ व मुहे। अंतरमकारए वा नीहारे संक मरणं वा ॥ २६७॥ भा० । अव्वक्खित्ताउत्तं उवसंतमुवद्विअं च नाऊणं । अणुन्नवेत्तु मेहावी, आलोएज्जा सुसंजए || ६ || कहणाइ अवक्खित्ते कोहाइ अणाउले तदुवउत्ते । संदिसहत्ति अणुन्नं काऊण विदिन्नमालोए ॥ ८॥ भा० | नहं वलं चलं भासं मूयं तह ढड्ढरं च वज्जेज्जा । आलोएज्ज सुविहिओ हत्थं मत्तं च वावारं ||७|| करपायभमुहिसीसऽच्छिउठ्ठमाईहिं नट्टिअं नाम । वलणं हत्थसरीरे चलणं काए य भावे य || ९ || भा० | गारत्थियभासाओ य वज्जए मूय ढड्ढरं च सरं । आलोए वावारं संसठ्ठियरे व करमत्ते ||२७०|| भा० । यद्दोसविमुक्कं गुरूणो गुरूसम्मयस्स वाऽऽलोए। जं जह गहियं तु भवे पढमाओ जा भवे चरिमा ||८|| काले य पहुप्पते उच्चा (व्वा) ओ वावि ओहमालोए। वेला गिलाणगस्स व अइच्छइ गुरू व उच्चाओ ॥९॥ पुरकम्म पच्छकम्मे अप्पेऽसुद्धे य ओहमालोए। तुरियकरणंमि जं से न सुज्झई तत्तिअं कहए || ५२०|| आलोइत्ता सव्वं सीसं सपडिग्गहं पमज्जित्ता । उड्ढमहो तिरियंमी पडिलेहे सव्वओ सव्वं ॥ १ ॥ उड्ढं पुप्फफलाई तिरियं मज्जारिसाणडिंभाई। खीलगदारूगआवडण अहो पे || २७१ || भा० । ओणमओ पवडेज्जा सिरओ पाणा सिरं पमज्जेज्जा। एमेव उग्गहंमिवि मा संकुडणे तसविणासो ||२|| काउं पडिग्गहं करयलंमि अद्धं च ओणमित्ताणं । भत्तं वा पाणं वा पडिदंसिज्जा गुरूसगासे ||३|| ताहे य दुरालोइय भत्तपाण एसणभणेसणाए उ । अठुस्सासे अहवा अणुग्गहादी उ झापज्जा ॥ २७४॥ भा० । विणण पठ्ठवित्ता सज्झायं कुणइ तो मुहुत्तागं । पुव्व भणिया य दोसा परिस्समाई जढा एवं ॥ २॥ दुविहो य होइ साहू मंडलिउवजीवओ य इयरो य । श्री आगमगुणमजूषा - १९९५ ॐ 298 फ्र [१९]

Loading...

Page Navigation
1 ... 1712 1713 1714 1715 1716 1717 1718 1719 1720 1721 1722 1723 1724 1725 1726 1727 1728 1729 1730 1731 1732 1733 1734 1735 1736 1737 1738 1739 1740 1741 1742 1743 1744 1745 1746 1747 1748 1749 1750 1751 1752 1753 1754 1755 1756 1757 1758 1759 1760 1761 1762 1763 1764 1765 1766 1767 1768 1769 1770 1771 1772 1773 1774 1775 1776 1777 1778 1779 1780 1781 1782 1783 1784 1785 1786 1787 1788 1789 1790 1791 1792 1793 1794 1795 1796 1797 1798 1799 1800 1801 1802 1803 1804 1805 1806 1807 1808 1809 1810 1811 1812 1813 1814 1815 1816 1817 1818 1819 1820 1821 1822 1823 1824 1825 1826 1827 1828 1829 1830 1831 1832 1833 1834 1835 1836 1837 1838 1839 1840 1841 1842 1843 1844 1845 1846 1847 1848 1849 1850 1851 1852 1853 1854 1855 1856 1857 1858 1859 1860 1861 1862 1863 1864 1865 1866 1867 1868