Book Title: Agam Guna Manjusha
Author(s): Gunsagarsuri
Publisher: Jina Goyam Guna Sarvoday Trust Mumbai
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(४१) ओहनिनुत्ति / पिडनिनुत्ति
[२७]
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दव्वंमि जिणघराई भावंमि य होइ तिविहं तु ॥३॥ जत्थ साहम्मिया बहवे, सीलमंता बहुस्सुया। चरित्तायारसंपन्ना, आययणं तं वियाणाहि ॥४॥ सुंदरजणसंसग्गी सीलदरिइंपि कुणइ सीलड्ढं । जह मेरूगिरीजायं तणंपि कणगत्तणमुवेइ ।।५।। एवं खलु आययणं निसेवमाणस्स हुज्ज साहुस्स । कंटगपहे व छलणा रागद्दोसे समासज्ज ॥६|| पडिसेवणा य दुविहा मूलगुणे चेव उत्तरगुणे य । मूलगुणे छठ्ठाणा उत्तरगुणि होइ तिगमाई ||७|| हिंसाऽलिय चोरिक्के मेहुन्न परिग्गहे य निसिभत्ते । इय छठ्ठाणा मूले उग्गमदोसा य इयरंमि ||८|| पडिसेवणा मइलणा भंगो य विराहणा य खलणा य। उवधाओ य असोही सबलीकरणं च एगठ्ठा ॥९॥ छठ्ठाणा तिगठाणा एगतरे दोसु वावि छलिएणं । कायव्वा उ विसोही सुद्धा दुक्खक्खयठ्ठाए ||७९०|| आलोयणा उ दुविहा मूलगुणे चेव उत्तरगुणे य । एक्केक्का चउकन्ना दुवग्ग सिद्धावसाणा य ।।१।। आलोयणा वियडणा सोही सब्भावदायणा चेव । निंदण गरिह विउट्टण सल्लुद्धरणंति एगठ्ठा ।।२।। एत्तो सल्लुद्धरणं वुच्छामी धीरपुरिसपन्नत्तं । जं नाऊण सुविहिया करेंति दुक्खक्खयं धीरा ॥३॥ दुविहा य होइ सोही दव्वसोही य भावसोही य । दव्वंमि वत्थमाई भावे मूलुत्तरगुणेसु ॥४॥ छत्तीसगुणसमन्नागएण तेणवि अवस्स कायव्वा । परसक्खिया विसोही सुट्ठवि ववहारकुसलेणं ।।५।। जह सुकुसलोऽवि विज्जो अन्नस्स कहेइ अप्पणो वाहिं। सोऊण तस्स विज्जस्स सोवि परिकम्ममारभइ ॥६|| एवं जाणंतेणवि पायच्छित्तविहिमप्पणो सम्मं । तहविय पागडतरयं आलोएतव्वयं होइ ||७|| गंतूण गुरूसकास काऊण य अंजलिं विणयमूलं । सव्वेण अत्तसोही कायव्वा एस उवएसो।।८॥ नहु सुज्झई ससल्लो जह भणियं सासणे धुयरयाणं । उद्धरियसव्वसल्लो सुज्झइ जीवो धुयकिलेसो॥९|| सहसा अण्णाणेण व भीएण व पिल्लिएण व परेण । वसणेणायंकेण व मूढेण व रागदोसेहिं ।।८००|| जंकिंचि कयमकजं न हुतं लब्भा पुणो समायरिउं । तस्स पडिक्कमियव्वं न हुतं हियएण वोढव्वं ।।१।। जह बालोजपंतो कज्जमकज्ज व उज्जुयं भणइ । तं तह आलोएज्जा मायामयविप्पमुक्को उस तस्स य पायच्छित्तं जं मग्गविऊगुरू उवइसंति। तं तह आयरियव्वं अणवत्थपसंगभीएणं ॥३।। नवि तं सत्थं व विसं व दुप्पउत्तो व कुणइ वेयालो । जंतं व दुप्पउत्तं सप्पो व पमाइणो कुद्धो॥४॥ जं कुणइ भावसल्लं अणुद्धियं उत्तमठ्ठकालंमि । दुल्लभबोहीयत्तं अणंतसंसारियत्तं च ||६|| तो उद्धरंति गारवरहिता मूलं पुणब्भवलयाणं । मिच्छादसणसल्लं मायासल्लं नियाणं च ।।६।। उद्धरियसव्वसल्लो आलोइयनिदिओ गुरूसगासे । होइ अतिरेगलहुओ ओहरियभरोव्व भारवहो ॥७॥ उद्धरियसव्वसल्लो भत्तपरिन्नाएँ धणियमाउत्तो। मरणाराहणजुत्तो चंदगवेझं समाणेइ ||८|| आराहणाइ जुत्तो सम्म काऊण सुविहिओ कालं । उक्कोसं तिन्नि भवे गंतूण लभेज्ज निव्वाणं ।।९।। एसा सामायारी कहिया भे धीरपुरिसपन्नत्ता। संजमतवड्ढगाणं निग्गंथाणं महरिसीणं ॥८१०|| एयं सामायारिंगँजंता चरणकरणमाउत्ता। साहूखवंति कम्म अणेगभवसंचियमणतं ||१|| एसा अणुग्गहत्था फुडवियडविसुद्धवंजणाइन्ना । इक्कारसहिं सएहिं एगुणवन्नेहिं संमत्ता ।८१२|| भाष्यगाथा: ३२२। प्रक्षिप्ता २१मनमो नमो निम्मल दसणस्स पंचम गणधर श्री सुधर्मा स्वामिने नम: ४१ पिंडनिज्जुत्ति १) पिंडे उग्गम उप्पायणेसणा जोयणा पमाणे य इंगाल धूम कारण अट्ठविहा पिंडनिज्जुत्ती॥१॥२) पिंड निकाय समूहे संपिंडण पिंडणा य समवए समुसरण निचय उवचय चए य जुम्मे य रासी य॥२॥३) पिंडस्स उ निक्खेवो चउक्कओ छक्कओ व कायव्वो निक्खेवं काऊणं परुवणा तस्स कायव्वा ॥३||४) कुलए य चउभागस्स संभवो छक्कए चउण्हं च नियमेण संभवो अत्थि छक्कगं निक्खिवे तम्हा ॥४॥५) नामंठवणापिंडो दव्वे खेत्ते य काल भावे य एसो खलु पिंडस्स उ निक्खेवो छव्विहो होइ ॥५॥ ६) गोण्णं समयकयं वा जं वावि हवेज तदुभएण कयं तं बितिनामपिंड ठवणापिंडं अओ वोच्छं॥६॥ ७) गुणनिप्फन्नं गोण्णं तं चेव जहत्थम सत्थवी बेति तं पुण खवणो जलणो तवणो पवणो पईवो य॥१॥ भा.-१८) पिंडण बहुदव्वाणं पडिवक्खेणावि जत्थ पिंडक्खा सो समयकओ पिंडो जह सुत्तं पिंडपडियाई ||भा.-२९) जस्स पुण पिंडवायट्ठयं पविट्ठस्स होइ संपत्ती गुडओयणपिंडेहिं तं तदुभयपिंडमाइंसु ॥३||भा.-३१०) उभयाइरित्तमहवा अन्नपि हु अत्थि लोइयं नाम अत्ताभिप्पायकयं जह सीहगदेवदत्ताई।।४||भा.-४ ११) गोण्णसमयारित्तं इणमन्नं वाऽवि सूइयं नाम जंह पिंडउत्ति कीरइ कस्सइ नाम मणूसस्स॥५॥ भा.-५१२) तुल्लेऽवि अभिप्याए समयपसिद्धं न गिण्हए लोओ
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श्री आगमगुणमजूषा -
१६०३
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