Book Title: Agam Guna Manjusha
Author(s): Gunsagarsuri
Publisher: Jina Goyam Guna Sarvoday Trust Mumbai
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(४०) आवस्सयं (पढम मूलसुत्तं) ५,६ अज्झयणं
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५१) सिद्ध भो पयओ नमो जिणमए नंदी सया संजमे देवं नाग सुवण्णकिन्नरगण स्सब्भूअभावच्चिए लागो जत्थ पइट्टिओ जगमिणं तेलुक्कमच्चासुरं धम्मो वड्ढउ सासओ विजयओ धम्मुत्तरं वड्ढउ ॥१३॥-४५२) सुअस्स भगवओ करेमि काउस्सग्गं वंदणं ० अन्नत्थ ०।२९।।सूत्र-४५३) सिद्धाणं बुद्धणं पारगयाणं परंपर गयाणं लोअग्गमुवगयाणं नमो सया सव्वसिद्धाणं ।।१४।।-१५४) जो देवाण वि देवो जं देवा पंजली नमसंति तं देवदेवमहियं सिरसा वंद महावीरं ॥१५||-२५५) इक्कोवि नमुक्कारो जिणवरवसहस्स वद्धमाणस्स संसार सागराओ तारेइ नरं व नारिं वा ।।१६।।-३५६) उज्जितसेल सिहरे दिक्खा नाणं निसीहिआ जस्स तं धम्मचक्कवट्टी अरिट्ठनेमिं नमसामि ।।१७।-४५७) चत्तारि अट्ठदस दो य वंदिआ जिणवरा चउव्वीसं परमट्ट निट्ठिअट्ठा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु॥१८॥-५ (इति सुयथव - सिद्धथव गाहाओ) ।३०। ५८) इच्छामि खमासमणो पिअं च भे जं मे हट्ठाणं तुट्ठाणं अप्पायं काणं अभग्गजोगाणं सुसीलाणं सुव्वयाणं सायरिय उवज्झायाणं नाणेणं दसणेणं चरित्तेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणाणं बहुसुभेणं भे दिवसो पोसहो पक्खो वइक्कंतो अन्नो य भे कल्लालेणं पज्जुवट्ठिओ सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि - तुब्भेहिं समं ।३२। सूत्र-५।६०) इच्छामि खमासमणो पुव्विं चेइयाई वंदित्ता नमंसित्ता तुब्भण्डं पायमूलं विहरमाणेणं जे केई बहु देवसिया साहुणो दिट्ठा समाणा वा वसमाणा वा गामाणुगामं दूइज्जमाणा वा राइणिया संपुच्छंति ओमराइणिया वंदंति अज्जया वंदंति अज्जियाओ वंदंति सावया वंदंति सावियाओ वंदंति अहंपि निसल्लो निक्कसाओत्ति-कट्ट सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि - अहमवि वंदावेमि चेइयाई ।३३।सूत्र-६। ६१) इच्छामि समासमणे उवट्ठिओ मि तुब्भण्हं संतिअं अहाकप्पं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुच्छणं वा (रयहरणं वा) अक्खरं वा पयं वा गाहं वा सिलोगं वा सिलोगद्धं वा अटुं वा हेउं वा पसिणं वा वागरणं वा तुब्भेहिं सम्मं चिअत्तेण दिन्नं मए अविणएण पडिच्छिअंतस्स मिच्छामिदुक्कडं - आयरियसंतिअं|३४|सूत्र-७।६२) इच्छामि खमासमणो अहमपुव्वाइं कयाइं च मे किइ कम्माइं आयरमंतरे विणयमंतरे सेहिए सेहाविओ संगहिओ उवग्गहिओ सारिओ वारिओ चोइओपडिचोइओचिअत्ता मे पडिचोयणा उव्वट्ठिओहं तुब्भण्हं तवतेयसिरीए इमाओ चाउरंतसंसारकंताराओ साहट्ट नित्थरिस्सामि त्तिकट्ट सिरसामणसा मत्थएण वंदामि - नित्थारगपारगाहोह ।३५]
सूत्र-८ पंचमं अज्झयणं समत्तं छ8 अज्झयणं - पच्चक्खाणं ६३) तत्थ समणोवासओ पुव्वामेव मिच्छत्ताओ पडिक्कमइ सम्मत्तं उवसंपज्जइ नो से कप्पड़ अज्जप्पभिई अन्नउत्थिए वा अन्नउत्थिअदेवयाणि वा अन्नउत्थियपरिम्गहियाणी वा अरिहंतचेझ्याणि वा वंदित्तए वा नमंसित्तए वा पुवि अणालत्तएणं आलवित्तए वा संलवित्तए वा तेसिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दाउंवा अनुप्पयाउं वा नन्नत्थ रायाभिओगेणं गणाभिओगेणं बलाभिओगेणं देवयभिओगेणं गुरुनिग्गहेणं वित्तीकंतारेणं से य सम्मत्तेपसत्थसमत्तमोहणियकम्माणुवेयणोवसमखयसमुत्थेपसमसंवेगाइलिंगे सुहे आयपरिणामे पन्नत्ते सम्मत्तस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयाया जाणियव्वा न समायरियव्वा तं जहा-संका कंखा वितिगिच्छा परपासंडपसंसा परपासंडसंथवे।३६॥सूत्र-१।६४) थूलगपाणाइवायं समणोवासओ पच्चक्खाइ से पाणाइवाए दुविहे पन्नत्तं तं जहासंकप्पओ अ आरंभओ अ तत्थ समणोवासओ संकप्पओ जावजीवाए पचच्क्खाइ नो आरंभओ थूलगपाणाइवायवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा-बंधे वहे छविच्छेए अइभारे भत्तपाणवुच्छेए ।३७।सूत्र-१।६५) थूलगमुसावायं समणोवासओ पच्चक्खाइ से य मुसावाए पंचविहे पन्नत्ते तं जहाकन्नालीए गवालीए भोमालीए नासावहारे कूडसक्खिज्जे, थूलगमुसावायवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयाराजाणियव्वा तं जहा-सहस्सब्भक्खाणे रहस्सब्भक्खाणे सदारमंतभेए मोसुवएसे कूडलेहकरणे।३८||सूत्र-श६६) थूलगअदत्तादानं समणोवासओ पच्चक्खाइ से अदिन्नावाणे दुविहे पन्नत्ते तं जहा सचित्तादत्तादाने अचित्तादत्तादाने अ, थूलादत्तादानवेरमणस्स समणोवासएणं मे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा तेनाहडे तक्करपओगे विरुद्धज्जाइंक्कमणे कूडतुलकूडमाणे तप्पडिरुवगववहारे।३९/सूत्र-४।६७) परदारगमणं समणोवासओपच्चक्खाइ सदारसंत्तोसंवा पडिवज्जइ से य परदारगमणे दुविहे पन्नत्ते तं जहा-ओरालियपरदारगमणे वेउव्वियपरदारगमणे सदारसंतोस्स समणोवासएणं झमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा- '
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श्री आगभगुणमंजूषा १५७४ 55FFFFFFFF%95555 98555 98GEOR
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