Book Title: Agam 45 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Arachana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailashsagarsur Gyanmandir | ॥१३नेगमस्सएगो अणुवउत्तो आगमओ एगंदव्वावस्सयं दोणि अणुवउत्ता आगमओ दोण्णि दव्वावस्सयाई तिण्णिअणुवउत्ता आगमओ तिण्णि ब्वावस्सयाई एवं जावइया अणुवउत्ता आगमओ तावइयाई दव्वावस्सयाई, एवमेव ववहारस्सवि, संगहस्स णं एगो वा अणेगावा अणुउत्तो वा अणुवउत्ता वा आगमओ दव्वावस्सयं वा दव्वावस्सयाणि वा से एगे दव्वावस्सए, उज्जुसुयस्स एगो अणुवउत्तो आगमतो एगंदव्वावस्सयं, पुहुत्तं नेच्छइ तिण्हं सहनयाणंजाणए अणुवउत्ते अवत्थु, कम्हा?,जइ जाणए अणुवउत्ते न भवति जइ अणुवउने जाणए ण भवति, तम्हा णथि आगमओ दव्वावस्सयो से तं आगमओ दव्वावस्सयं १४॥ से किं तं नोआगमओ दव्वावस्सय?, २ तिविहं पं००-जाणयसरीरदव्वावस्सयं भवियसरीरदव्वावस्सयं जाणयसरीरभवियसरीरवतिरित्तं दव्यावस्सयं १५१से किं तं जाणयसरीरदव्वावस्सयं? २ आवस्सएत्ति पयत्थाहिगारजाणयस्स जं सरीरयं ववगयचुतचावितचत्तदेहं जीवविष्यजढं सिज्जागयं वा संथारगयं वा निसीहिआगयं वा सिद्धसिलातलगयं वा पासित्ताणं कोई भणेज्जा अहो! णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिटेणं भावेणं आवस्सएतिपयं आपवियं पण्णवियं परुवियं दंसियं निदंसियं उवदंसियं, जहा को दिटुंतो?, अयं महुकुंभे आसी अयं घयकुंभे आसी, सेत्तं जाणयसरीरदव्वावस्सयं १६॥ से किं तं भविअसरीरदव्वावस्सयं?, २ जे जीवे जोणिजम्मणनिक्खंते इमेणं चेव आत्तएणं सरीरसभुस्सएणं जिणोवदितुणं भावेणं आवस्सएत्तिपयं सेयकाले सिक्खिस्सइ न ताव सिक्खड़, जहा को दिटुंतो?, अयं महकुंभे भविस्सइ अयं ध्यकुंभे भविस्सइ, सेत्तं भवियसरीरदव्वावस्सयं १७ से किं तं ॥ श्री अनुयोगद्वारसूत्र ॥ पू. सागरजी म. संशोधिता For Private And Personal

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