Book Title: Agam 45 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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वीरो रसो जहा सो नाम महावीरो जो रज पयहिऊण पव्वइओ। कामकोहमहासत्तूपक्खनिग्धायणं कुणइ॥५॥संगारो नाम रसो रतिसंजोगाभिलाससंजणणोमिंडणविलासबिब्बोअहासलीलारमणलिंगो॥६॥सिंगारोरसो जहामहरविलाससललिअंहियउम्भादण जुवाणाणीसामा सदुद्दामं दाएती मेहलादाम॥७॥ विम्हयकरो अपुव्वो अणुभूअपुव्यो य जो रसो होइ।हरिसविसाउप्पत्तिलक्खणो अब्भुओ नाम॥८॥ अब्भुओ रसो जहा अब्भुअतरमिह एत्तो अन्नं किं अस्थि जीवलोगंमिा जं जिणवयणे अत्था तिकालजुत्ता मुणिजति?॥९॥ भयजणणरूवसध्यारचिंताकहासमुप्पण्णो। संमोहसंभभविसायमरणलिंगो रसो रोहो॥७०॥ रोद्दो रसो जहा भिउडीविडंबियमुहोसंदट्ठोइयरुहिरभोकिण्णोहिणसि पसुंअसुरणिभो भीमरसिय अइरोह! रोद्दोऽसि॥१॥विणओवयारगुज्झगुरुदारभेशवइकमुप्पण्णो। वेलणओ नाम रसो लज्जासंकाकरणलिंगो॥२॥ वेलणओ रसो जहा किं लोइयकरणीओ लजणीअतरंति लज्जयाभुत्तिोवारिजंमी गुरुयणो परिवंदइ जंबहुप्पोत्तं ॥३॥असुइकुणिमदुईसणसंजोगब्भासगंधनिष्फण्णोनिव्वेयऽविहिंसालक्खणो रसो होइ बीभच्छो॥४॥ बीभच्छो जहा असुइमलभरियनिझरसभावदुग्गंथि सव्वकालंपि। धण्णा 3 सरीरकलिं बहुभलकलुसं विमुंचंति॥५॥ रूववयवेसभासाविवरीअविंबणासमुप्पण्णो। हासो मणप्पहासो पगासलिंगो रसो होइ॥६॥ हासो रसो जहा पासुत्तमसीमंडिअपडिबुद्धं देवरं पलोअंती। ही जह थणभरकंपणपणमिअमझा हसइ सामा॥७॥ पिअविष्पओगबंधवहवाहिविणिवायसंभमुप्पण्णो। सोइअविलविअपम्हाणरुण्णलिंगो रसो करुणो॥८॥ कणो रसो जहा पज्झायकिलामिअयं In श्री अनुयोगद्वारसूत्र ॥]
पू. सागरजी म. संशोधित
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