Book Title: Agam 45 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 78
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir निल्लेवे णिट्ठिए भवइ, से तं वावहारिए उद्धारपनिओवमे, एएसिं पल्लाणं कोडीकोडी हवेज्ज दसगुणिया । तं ववहारिअस्स उद्धार सागरोवमस्स एगस्स भवे परिमाणं ॥१०७॥ एएहिं वावहारिअउद्धार पनि ओवमसागरोवमेहिं किं पओयणं?, एएहिं० णत्थि किंचिप्पओयणं, केवलं पण्णवणा पण्णविज्जइ, से तं वावहारिए उद्धारपलि ओवमे । से किं तं सुहमे उद्धारपलि ओवमे ?, २ से | जहानामए पल्ले सिआ जोअणं आयामविक्खंभेणं जोअणं उव्वेहेणं तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, से णं पल्ले एगाहि अबे आहि अते आहियउक्कोसेणंसत्तर त्तपरूढाणं संसट्टे संनिचिते भरिए वालग्गकोडीणं, तत्थ णं एगमेगे वालग्गे असंखिज्जाइं खंडाई कज्जइ, ते णं वालग्गा दिट्ठीओगाहणाओ असंखेज्जइ भागमेत्ता सुहमस्स पणगजीवस्स सरीरोगाहणाउ असंखेज्जगुणा, ते णं वालग्गा णो अग्गी डहेज्जा णो वाऊ हरेज्जा णो कुहेज्जा णो पलिविद्धंसिज्जा णो पूड़त्ताए हव्वमागच्छेज्जा, तओ गं समए २ एगमेगं वालग्गं अवहाय जावइएण कालेणं से पल्ले खीणे नीरए निल्लेवे णिट्टिए भवइ, से तं सुहमे उद्धारपलि ओवमे, एएसिं पल्लाणं कोडाकोडी० ! तं सुहमस्स उद्धारसागरो वमस्स० ॥ १०८ ॥ एएहिं सुहुमउद्धारपलि ओवमसागरोवमेहिं किं पओअणं, एएहिं० गरोवमेहिं दीवसमुद्दाणं उद्धारो घेष्पड़, केवइया णं भंते! दीवसमुद्दा उद्धारेणं पं०?, गो० ! जावइयाणं अड्ढाइज्जाणं उद्धारसाग० उद्धारसमया एवइया णं दीवसमुद्दा उद्धारेणं पं०, से तं सुहमे उद्धारपलि ओवमे, से तं उद्धा०] से किं तं अद्धा ०?, २ दुविहे पं० नं० - सुहमे य वावहारिए य, तत्थ णं जे से सहमे से ठप्पे, तत्थ णं जे से वाव० से जहा० पल्ले० जोअणं आया० ॥ श्री अन्नुयोगद्वारसूत्रं ॥ ६७ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

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