Book Title: Agam 45 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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से किं तं पच्छाणुपुव्वी?, २ सनिवाइए जाव उदइए, से तं पच्छाणुपुव्वी, से किं तं अणाणुपुव्वी?, २ एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए छगच्छगयाए सेढीए अनमत्रभासो दुरूवूणो, से तं अणाणुपुवी से तं भावाणुपुव्वी, से तं आणुपुव्वी११९। से किं तं णामे?, णामे दसविहे पं० २०-एगाभे दुणामे तिणामे चउणामे पंचणामे छणामे सत्तणामे अट्ठणामे णवणामे दंसणामे १२० से किं तं एगणामे?, २ णामाणि जाणि काणिवि दव्वाण गुणाण पज्जवाणं च तेसिं आगमनिहसे नामंति परूविया सण्णा ॥१७॥से एगणामे १२११से किं तंदुनामे?,२ दुविहे पं० २०, एगक्खरिए य अणेगक्खरिए य, से किं तं एगवखरिए?, २ अणेगविहे पं० २०-ह्रीः श्रीः धीः स्त्री,से तंएगक्खरिए, से किं तं अणेगक्खरिए?,२ कन्ना वीणा लता माला, से तंअणेगक्खरिए, अहवा दुणामे दुविहे पं०२०-जीवनामे य अजीवनामे य से किं तंजीवणाम?, २ अणेगविहे पं०२०-देवदत्तो जण्णदत्तो विण्हुदत्तो सोमदत्तो, से तं जीवनामे, से किं तं अजीवनामे?, २ अणेगविहे पं० तं० घडो पडो कडो रहो, से तं अजीवनामे, अहवा दुनामे दुविहे पं० तं०-विसेसिए य अविसेसिए य, अविसेसिए दव्वे विसेसिए जीवदव्वे य अजीवदव्वे य, अविसेसिए जीवदव्वे विसेसिए णेरइए तिरिक्खजोणिए मणुस्से देवे, अविसेसिए णेरइए विसेसिए रयणप्पहाए सकरप्प० वालुअ० पंक० धूम तमाए तमतमाए, अविसेसिए रयणप्पहापुढवीणेरइए विसेसिए पज्जत्तए य अपजत्तए य, एवं जाव अविसेसिए तमतमापुढवीणेरइए विसेसिए पज्जत्तए य अपज्जत्तए य,अविसेसिए तिरिक्खजोणिए विसेसिए एगिदिए बेइंदिए तेइंदिए चरिदिए पंचिदिए, अविसेसिए एगिदिए विसेसिए ॥श्री अनुयोगद्वारसूत्रं ॥]
पू. सागरजी म. संरक्षिता
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