Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 17
________________ विषयानुक्रम ३८८५ गाथा संख्या विषय ३८२६,३८२७ पुस्तकपंचक के दोष। ३८२८-३८३१ पुस्तकीय जीव पलायन नहीं कर सकते। समझाने हेतु वागुरा लेप, जाल और चक्र का दृष्टान्त। ३८३२ तृणपंचक में भी आत्म तथा संयमविराधना। ३८३३ तृण का परिभोग करने पर निष्पन्न प्रायश्चित्त। ३८३४-३८३७ सलोम चर्म तथा निर्लोम चर्म के उपयोग में दोष है फिर प्रस्तुत सूत्र में उसकी अनुज्ञा क्यों ? शिष्य द्वारा प्रश्न आचार्य द्वारा समाधान। ३८३८ कुंभकार, लोहकार आदि द्वारा दिन में परिभुक्त चर्म ग्रहण की विधि। ३८३९,३८४० निर्लोम चर्म ग्रहण के कारण। ३८४१-३८४३ आगाढ़ कारण में सलोम चर्म तथा पश्चानुपूर्वी से पुस्तकपंचक पर्यन्त भी कल्पनीय। सूत्र ५ ३८४४,३८४५ प्रस्तुत सूत्र में चर्म का प्रमाण और उपयोग। ३८४६ कृत्स्न चर्म के चार प्रकार। उनके ग्रहण का निषेध। ३८४७ चारों कृत्स्न चर्म का स्वरूप। ३८४८ सकल कृत्स्न की व्याख्या। ३८४९ प्रमाण कृत्स्न की व्याख्या। ३८५० वागुरा, खपुसा, जंघा तथा अर्धजंघा का वर्णन। ३८५१ वर्ण तथा बंधन कृत्स्न की व्याख्या। ३८५२-३८५५ चारों कृत्स्न ग्रहण करने पर अलग-अलग प्रायश्चित्त। ३८५६-३८६१ कृत्स्न चर्म के उपयोग से होने वाले जीवोपघात आदि द्रव्यात्मक तथा गर्व आदि भावात्मक दोषों का वर्णन। ३८६२,३८६३ कृत्स्न चर्म ग्रहण की अनुज्ञा के कारण। ३८६४-३८६६ क्रमणिका का उपयोग कब? कैसे? ३८६७,३८६८ वर्ण कृत्स्न चर्म ग्रहण का क्रम। ३८६९ पूर्वकृत कृत्स्न या अकृत्स्न चर्म ही साधुओं को कल्पनीय। ३८७० तीन बंध कौन-कौन से? ३८७१ उपानह आदि साधु न करे न कराए। तद्गत प्रायश्चित्त। सूत्र ६ ३८७२ सूत्र में अनुज्ञात होने पर अकृत्स्न चर्म का ग्रहण कल्पनीय नहीं। अपवाद में भी विधिपूर्वक कल्पनीय। गाथा संख्या विषय ३८७३-३८७८ अकृत्स्न चर्म के अठारह भाग क्यों ? कैसे? वत्थ पदं सूत्र ७,८ ३८७९ चर्म की तरह वस्त्र आपवादिक नही। ३८८० कृत्स्न वस्त्र के ६ निक्षेप। ३८८१ द्रव्य कृत्स्न के प्रकार। ३८८२ सकल द्रव्य कृत्स्न का स्वरूप। ३८८३ प्रमाण द्रव्य कृत्स्न का स्वरूप। ३८८४ क्षेत्रकृत्स्न वस्त्र कौन सा? कालकृत्स्न वस्त्र कौन सा? ३८८६ भावकृत्स्न वस्त्र के दो प्रकार। ३८८७ वर्ण कृत्स्न और उसके प्रकार। ३८८८,३२८९ कृत्स्न वस्त्र में तीन प्रकार की आरोपणा तथा वर्णकृस्त्न में भी यही आरोपणा। ३८९० मूल्ययुत वस्त्र के तीन प्रकार। ३९९१,३८९२ उत्तरापथ तथा दक्षिणा पथ के रूपक के मूल्य का अंतर। ३८९३-३८९८ अठारह रूपक मूल्य वस्त्र ग्रहण से लक्षरूपक मूल्य पर्यन्त वस्त्र ग्रहण का तीन प्रकार से प्रायश्चित्त। ३८९९ भावकृत्स्न का स्वरूप तथा उसके प्रकार। ३९००,३९०१ द्रव्य कृत्स्न वस्त्र ग्रहण करने पर उत्पन्न होने वाले दोष। भाव कृत्स्न के दोष। ३९०३,३९०४ रत्नकंबल का दृष्टान्त। ३९०५ स्तेनभय आदि न होने पर सकलकृत्स्न वस्त्र कल्पनीय किन्तु किनारी का छेदन आवश्यक। ३९०६ सिन्धु आदि जनपदों के वस्त्रों के किनारी का छेदन आवश्यक नहीं। ३९०७ किनारीयुक्त वस्त्र ग्रहण के कारण। ३९०८ प्रमाणातिरिक्त वस्त्रों का छेदन न करने का कथन कब ? क्यों? ३९०९ किन कारणों से अपवाद का अपवाद योजनीय। ३९१०,३९११ भाव कृत्स्न वस्त्रों का ग्रहण और धारणा। ३९१२,३९१३ कृत्स्न वस्त्रों का धारण किन-किन देशों में। ३९१४ महाराष्ट्र देश में कौन सा वस्त्र कब धारण करें? इसका विवेचन। ३९१५,३९१६ भावकृत्स्न वस्त्र किसके लिए अनुज्ञात ? ३९०२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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