Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 15
________________ गाथा संख्या विषय ३६७९-३६८१ गणधर वस्त्र प्रवर्तिनी को सौंपे। ३६८२ ३६८३ ३६८४ ३६८५ २६८६ ३६९८ ३६९९ ३७०० तीसरा उद्देशक निग्गंथि उवस्सय-पदं सूत्र १ ३६८७ निष्कारण आर्या उपाश्रय जाने का निषेध | - ३६८८, ३६८९ आर्या उपाश्रय में स्थान, निषीदन आदि करने से प्रायश्चित्त ३६९०,३६९१ आर्या प्रतिश्रय में प्रवेश के चार विकल्प। ३६९२ आर्या उपाश्रय के अग्रद्वार, मूलद्वार आदि स्थानों में प्रवेश करने पर प्राप्त प्रायश्चित | ३६९३-३६९५ आर्या उपाश्रय में प्रवेश से होने वाले अपाय । ३६९६,३६९७ बाज पक्षी के दृष्टान्त द्वारा अकस्मात् आर्या प्रतिश्रय में गमन से आर्याओं को कष्ट । वस्त आर्याओं से होने वाले दोष आर्या उपाश्रय में मुनि के जाने से ग्लान साध्वी के कालातिक्रमण। ३७०१ विषयानुक्रम बिना आचार्य की आज्ञा से आर्याओं के उपाश्रय में जाने पर प्रायश्चित्त । आचार्य आदि बिना कारण आर्या उपाश्रय में जाए तो प्रायश्चित्त । आर्या उपाश्रय में जाने के दस स्थान । स्मृति करण क्या ? दस स्थानों से निष्पन्न प्रायश्चित्त मुनि के अचानक प्रवेश से तपस्विनी आर्या के होने वाली विराधना । साधु के आर्या उपाश्रय के द्वारमूल में खड़े होने से होने वाली विराधना। Jain Education International ३७०२ साधु के आगमन से भिक्षा काल का अतिक्रमण । ३७०३ साधु के आगमन से स्वाध्याय में व्याघात कैसे ? ३७०४, ३७०५ संयम रूपी तालाब का निदर्शन। तथा पालि भेद का कथन । गाथा संख्या विषय ३७०६ आर्या उपाश्रय में श्रमण को देखकर एकाकिनी वसति संरक्षिका आर्या के होने वाली मानसिक उथल-पुथल । ३७०७-३७१३ एकाकिनी आर्या और एकाकी साधु के परस्पर संभाषण से उत्पन्न भाव संबंध का विवेचन । प्रचला, त्वग्वर्त्तन आदि की द्वार गाथा । ३७१४ ३७१५-३७१७ प्रचला आदि का संक्षेप में विवेचन और आर्या उपाश्रय में इनसे निष्पन्न प्रायश्चित्त । ३७१८,३७१९ निष्कारण विधिपूर्वक भी आर्या उपाश्रय जाने से वे ही पूर्वोक्त दोष। कारणवश अविधि से प्रवेश से भी वे ही पूर्वोक्त दोष तथा कारणवश विधि से प्रवेश शुद्ध । कारणवश प्रतिश्रय गमन की द्वार गाथा | ३७२१ ३७२२,३७२३ आर्या उपाश्रय से जाने के कारणों का विवेचन। ३७२४ आर्यिकाओं को वसति, संस्तारक आदि स्वयं ३७२० ३७२५ ३७२६ ३७२७, ३७२८ मुनि आर्या उपाश्रय में कब जाए ? ३७२९-३७३६ आचार्य आर्या उपाश्रय में कब पधारे ? ३७३७-३७४० साध्वी को अनुशिष्टि में क्या कहे ? ३७४१-३७४३ आर्या उपाश्रय में आचार्य आदि के प्रवेश के अन्य ३७४४ ३७४५ ग्रहण करना अकल्पनीय । गणधर का आर्या उपाश्रय में जाने के कारण। प्राघूर्णक का आर्या उपाश्रय में जाने के कारण । प्राघूर्णक कौन ? ३७४६ ३७४७ ३७४८ ३७४९ For Private & Personal Use Only कारण । प्राघूर्णक मुनि के लिए आर्या उपाश्रय में जाने की विधि तथा उपाश्रय में साध्वियों की बैठने की विधि। प्राघूर्ण आदि के लिए काष्ठमय आसन्दक आदि लाने की यतना। शय्यातरकुल दिखाने / कहने की विधि | अविधिपूर्वक दिखाने से होने वाले दोष । आर्या वसति में धर्मदेशना और अनुशिष्टि । इस विषय में अन्य आदेश मत का विवेचन । www.jainelibrary.org.

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