Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमसूत्रे बाहल्यायाः, अशीतिसहस्र योजनोत्तरैकलक्षबाहल्यायाः 'खेत्तच्छेएणं' क्षेत्रच्छेदेन केवलिबुद्धया प्रतरकाण्डविभागेन 'छिज्जमाणीए' छियमानाया-विभज्यमानायाः 'अस्थि' सन्ति अस्तीति निपातोऽत्र बहुवचनार्थगर्भः, 'दच्वाई' द्रव्याणि सन्ति । 'वष्णओ' वर्णतः 'कालनीललोहियहालिहसुक्किलाई कालनील लोहित हारिद्रशुक्लानि तानि द्रव्याणि वर्णतः कालानि-कालगुणोपेतानि-एवं नीलादिष्वपि ज्ञातव्यम् नीलानि लोहितानि हारिद्राणि शुक्लानि 'गंधओ सुरभिगन्धानि दुरभिगन्धानि 'रसो तित्तकडुयकसायअंबिलमहुराई' रसतः तिक्तरसानि कटुकानि कषायाणि अम्लानि मधुराणि 'फामओ' स्पर्शतः 'कक्खडमउयगरुयलहुयसीयउसिणणिद्धलुक्खाई' कर्क शानि मृदूनि गुरुकाणि लघुकानि शीतानि उष्णानि स्निग्धानि रूक्षाणि, 'संठाणओ परिमंडलवतंस चउरंस आयय संठाणपरिणयाई' संस्थानतः परिमण्डलानि वृत्तानि व्यत्राणि हजार (१८००००) योजन के पिण्ड हो 'खेत्तच्छे एणं छिज्जमाणीए' केवल ज्ञानी की बुद्धि से जब हम प्रतर काण्ड रूप से विभाग-खण्ड खण्ड करते हैं तो इनके 'दव्वाई' द्रव्य 'वण्णओ' वर्ण की अपेक्षा 'कालनील लोहिय हालिहसुकिल्लाइं अत्थि' क्या कृष्ण वर्ण वाले, नीले वर्ण वाले, लाल वर्ण वाले, पीले वर्ण वाले और शुक्ल वर्ण वाले होते हैं ? 'गंधओ' गंध की अपेक्षा 'सुब्भिगंधाई दुविभगंधाई' क्या वे सुरभिगंध वाले और दुरभिगंध वाले होते हैं ? 'रसओ' रस की अपेक्षा क्या वे 'तित्त कडुयकसायअंबिलमहुराई' तिक्त, कटुक, कषाय, अम्ल और मधुर रस वाले होते हैं ? 'फासो कक्खड, मउय, गरुय, लय, मीय-उसिण-णिद्ध-लुक्खाइ' स्पर्श की अपेक्षा क्या वे कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्श वाले होते हैं ? पिछे, 'खेत्तच्छेए णं छिज्जमाणीए' विज्ञानीनी मुद्धिथा न्यारे ते प्रतर
is पाथी विभाग मेटले है , म ४२वामां आवे छे, ते 'दव्वाइ द्रव्य 'वण्णओ' पनी अपेक्षाथी ‘काल नील लोहिय हालिद्द सुकिल्लाई अत्थि' “શું કૃષ્ણ કાળાવર્ણવાળું નીલવર્ણવાળું લાલવર્ણવાળું પીળાવર્ણ વાળું અને શુકલ
हेतi संवा वा हाय छे? गंधओ' धनी अपेक्षाथी 'सुब्भिगंधाई, दुब्भिगंधाई' शुते सुरक्षी नाम सुगवाणु डाय छ ? २मिनाम दुवाणु डाय छ ? 'रसओ' २सनी अपेक्षाथी शुते 'तित्तकडुयकसायबिलमहुराई' तित, ४४, पाय, तुरा APK मांटा मने मधुर भी। २सपाणु डाय छ १ 'फासओ कक्खड मउय गरुय, लहुय, सीय उसिण णिद्ध लुक्खाइ' १५शी अपेक्षाथी शु ४४°श, भृ, २३, सधु, शीत, Sue] नि०५ भने ३६ ५५ पाणु
જીવાભિગમસૂત્ર