Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 18
________________ ||१२५ सौधर्म ईशान देवता का विशेषत्व ...४५७ । ततिय शतक का चौथा उद्देश ५३१ १२६ सौधर्मेन्द्र इशानेन्द्र का मिलाप ...४५८ । १२७ उक्त दोनों इन्द्रों का झगडा, सनत्क । १३९ भावीतात्मा साधु के देवता के ज्ञान भांगे.५३१ १४० वायु काया का बैंक्रय का कथन. ५३४१ ___मारेन्द्र समजावे,सनत्कुमारेद्र का पूर्वभव ४६० १४१ बदल को विचित्र रूपमे परिणमना. ५३७ तृतिय शतक का दूसरा उद्देश ४६५ १४२ परभव में उत्पन्न होने की लेश्या. ५३८ ११२८ असुरकुमार का निवासस्थान ...४६५ । १४३ साधु के वैकय करने के प्रश्नोत्तर. ५४० १० ११२९ असुरकुमार का तीनों दिशा में गमन.४६७ तुतिय शतक का पंचमोद्देश. ५४४ १३. वैमानिक देव चोरी करते हैं ...४७१. १४४ पुनःसाधु के वैक्रय करने के प्रश्नोत्तर.५४४१ ११३१ अनुरकुमार का सौधर्म स्वर्ग में गमन. ४७४ ११३२ असुरकुमार का पूर्वभव तामलीतापस ४७७ तृतिय शतक का छट्टा उद्देश. ५५२ ११३३ सौधर्मेन्द्र असुरेन्द्र वज्र की गति ...५०३ १४५ विभंग ज्ञान का अवधि ज्ञान. ५ १४६ साधु के वैक्रय शक्ति का कथन. ५६०१ तुतिय शतक का तीसरा उद्देश ५१७ १३४ मंडीपुत्र साधु के क्रिया के प्रश्नोत्तर ५१७ तृतिय शतक का सातवा उद्देश. ५६१ ११३५ साधु को भी क्रिया लगती हैं ...५२१ १४७ चारों लोकपालों के विमानों का तथा १२६ सायोगी सक्रिय अन्तक्रिया नहीं करे. ५२१ । उन के बारेका मनुष्य लोकमे प्रभाव. ५६२ १३७ योगनिरुंधा अन्तक्रिया करे दृष्टान्त...५२४ तृतीय शतक का आठवा उद्देश.५८४ १३८ लवण समुद्र की भरती आने का प्रश्न.५२९ । १४८ देवताओंके मालिक दश देवता. ५८ १० नुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक पिाजी *प्रकाशक-राजाबाहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी

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