Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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स० लेश्या सहित ज. जैसे ओ औधिक कि कृष्णलेश्या नीनीललेश्या काकापुत लेश्या जजैसे ओ. औधिक जीव ण विशेष प० प्रमत्त अ० अप्रमत्त भा० कहना ते तेजो लेश्या प० पद्मलेश्या सु० शुक्ल लेश्या ज. जैसे ओ० औधिक जीव ण विशेष सि० सिद्ध णा नहीं भा० कहना ॥४०॥ इ० यह भ० भविक भ. भगवन णा• ज्ञान ५० परभविक ज्ञान उ० उभय भविक गो गौतम इ. यह भ० भविक ज्ञान
• अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 8
॥ ३९ ॥ सलेस्सा जहा ओहिया किण्हलेसस्स नीललेसस्स, काउलेसस्स, जहा ओहिया जीवा । णबरं पमत्त अपमत्ताण भाणियब्वा । तेउलेसस्स पम्हलेसस्स सुक्कलेसस्स जहा ओहिया जीवा । णवरं सिद्धा ण भाणिया ॥ ४० ॥ इह भविए भंते णाणे, परभविए जाणे, तदुभय भवि एणाणे ? गोयमा ! इह भविए वि णाणे, परभवि
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
लेश्या का प्रश्नकहते हैं. अहो भगवन् ! सलेशी जीव आरंभी हैं? अहो गौतम जैसे समुच्चय जीव का कहा. वैसा कहना. कृष्ण, नील व कापोत लेश्यावालेको समस्त जीव जेसे कहना परंतु इसमें प्रमत्त व अप्रमत्तका कथन करना नहीं तेजु, पद्म, व शुक्ल लेश्या वाले औधिक जीव (सब जीव) जैसे कहना यहां पर सिद्ध को कहना नहीं क्योंकि सिद्ध अलेशी हैं ॥४०॥ अब आरंभ का हेतुभत ज्ञानका स्वरूप बताते हैं. अहो भगवन् ।