Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
शब्दाघ
समवेदना स० समक्रिया स० समायुष्य बो जानना ।। १५ ।। क० कितनी मं० भगवन् ले० लेश्या प० * प्ररूपी गो० गोतम छः छश्या प० प्ररूपी ल० लेश्या का बी० दूसरा उ० उद्देशा भा० कहना जा०३
भावार्थ
१०१८३- पंचपाङ्ग विवाह पञ्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
यित्वा गाथा || दुक्खाउएउदिपणे आहारे
कम्म वण्ण लेस्साय समवेयण समकिरिया समाउया चैव बोधव्या ॥ 9 ॥ १६ ॥ कइणं भंते लेस्साओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! छ लेस्साओ पण्णत्ताओ, तंजहा लेस्साणं बीओउ
उदय में आया हुवा वेदे ? क्या सरिखे आहार, कर्म वर्ण लेश्या, वेदना, क्रिया व आयुष्यवाले हैं वगैरह सब पूर्वोक्त जैसे कहना. ॥१५॥ नारकी सलेशी हैं ऐना पहिले कहा इसलिये आगे लेश्याका स्वरूप कहते हैं. अहो भगवन् ! लेश्या के कितने भेद ? अहो गौतम ! लेश्या के छ भेद कहे हैं इन छही {लेश्श का वर्णन पन्नवणा सूत्र में लेश्यापद का दूसरा उद्देशा में जैसा कहा है वैसा जानना. अहो भगवन् ! {इन लेश्या में से कोनसी लेश्यावाला विशेष ऋद्धि का धारक व कौनसी लेश्यावाला अल्पऋद्धिका धारक होता है ? अहो गौतम ! कृष्ण लेश्या से नील लेश्यावाला अधिक ऋद्धिका धारक होता है, नील लेश्या से कापोत लेश्यावाला अधिक ऋद्धिका धारक होता है, कापोत से तेजो लेश्यावाला अधिक ऋद्धि का धारक होता है, तेजोते पद्मलेश्यावाला अधिक ऋद्धिका धारक होता है, और पद्म से शुक्ल लेश्यावाला
पहिला शतक का दूसरा उद्देशा
७७