Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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ऋषिजी
शब्दार्थ यावत् इ० ऋद्धि ॥ १५ ॥ जॉ० जीव का ती० अतीत काल आ० कहा हुवा क० कितना सं० संसार से
45 सचिठण काल १० प्ररूपा गो० गौतमं च० चार प्रकार का सं० संसार संचिठन काल णे० नारकी सं०
ससार संचिठन काल ति० तिर्य व संसार सं० संचिठन काल म० मनुष्य संसार सं० संचिठण काल दे०१ देवसंसार सं० संचिठण कालं णे नारकी सं० संसार संचिठण काल क० कितना प्रकार का गो० गौतम
देसओ भाणेयब्बो जाव इड्डी ॥ १६ ॥ जीवस्सणं भंते तीयद्वाए आदिट्टस्स कइविहे संसार संचिट्ठण काले पण्णत्ते ? गोयमा! चउविहे संसार संचिट्ठण काले पण्णत्ते, तंजहा
णेरइए संसार संचिट्ठण काले, तिरिक्ख जोणिय संसार संचिट्ठण काले, मणुस्स भावार्थ अधिक ऋद्धि का धारक होता है ॥ १६ ॥ मलेशी जीव संसार में रहते हैं इसलिये संसार में रहनेका प्रश्न ?
र करते हैं. * अहो भगवन् ! नारकी आदि जीवों को अतीत काल में कितने प्रकार के संसार संचिठनकाल
कहे हैं ? अहो गौतम ! उपधिभेद मे एक भव से भवान्तर में रहने की क्रिया का काल के चार भेद कहे हैं. १ नारकी के भव में जीव रहे सो नरक संसार संचिठनकाल २ तिर्यंच के भव में रहे सो तिर्यंच संसार
कितक की ऐसी मान्यता होती है कि मष्य मरकर मनुष्य व पशु मरकर पशु ही होता है इसका निर्णय यहांपर किया गया है. | १ एक भवसे दूसरे भव में रहने की क्रिया का काल.
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
अनुवाइक-बालब्रह्मचारी