Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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भावा
48808 पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र
ति तीन प्रकार का मु० शून्य काल अ० अशून्य काल मि. मिश्रकाल ति तिर्यंच का सं० संसार सं० १ संचिठण काल पु० पृच्छा गोः गौतम दु. दोप्रकार का अ० अशून्य काल मि० मिश्रकाल म० मनुष्य में
संसार संचिट्ठण काले, देव संमार संचिटण काले।। णेरइय संसार संचिट्ठण कालेणं भंते ।
कइविहे प०? गोयमा! तिविहे प०० सुण्णकाले, असुण्णकाले, मिस्सकाले। तिरिक्ख है संचिठन काल ३ मनुष्य के भव में रहे सो मनुष्य संसार संचिठन काल ४ देवता के भव में रहे सो देव संसार संचिठन काल. अहो भगवन् ! नारकी संसार संचिठन काल के कितने भेद ? अहोई गौतम ! नारक संमार संचिठन काल के तीन भेद कहे हैं १ शून्यकाल २ अशून्यकाल और ३ मिश्रकाल * अहो भगवन् ! तिर्यंच संसार संचिठन कालके कितने भेद ? अहो गौतम ! दो भेद. अशून्यकाल
* वर्तमान कालमें सातों नरकमें जो नारकी विद्यमानहैं उनमें से कोई उद्वर्तेनहीं, और उसमें कोई नविन उत्पन्न होवे नहीं, जितने हैं उतने ही रहे सो नरक गति आश्रित अशून्यकाल. जैसे कहा है आइट्ट समइहै याण नेरइयाणं न जाव एक्को वि उवदृइ अण्गोवा उववज्जइ सो अमुण्णोउ ॥१॥ उन सातों नरक के नारकी में से जो उद्वर्त वाले होवे उस में एक शेष रहे सोमिश्रकाल और सब उद्वर्ते सो शून्यकाल जैसे उबट्टे एक्कंमिवि तामीसो धरइ जाव एकोवि पिल्लेवरहि व्यहिं वट्टमाणेहिं मुण्णोउ ॥ १॥ यहांपर मिश्र नारक संसारावस्थान काल मूत्र वर्तमान भव आश्रित नहीं ग्रहण किया है परंतु वर्तमान काल के नारकी अन्य गति में है
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god><8808 पहिला शतकका दूसरा उद्दशा 8085205