Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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शब्दार्थ
है जी जीव भं० भगान कं० कांक्षा मोहनीय क. कर्म का करे इ० हा क० करे से वह भ० भगवन् । कि०क्या दे०देशने दे देश क०करे दे०दश से स०सर्व क०करे स०सर्व से दे०देश क करे स० सर्व से स० सर्व क०करे गो गौतम णो नहीं दे देशसे दे देश क करे णो नहीं दे०देशसे स०सर्व क करे णो नहीं स०
जीवाणं भंते ! कंखामोहणिज्जे कम्मे कड़े ? हंता कडे. से भंते : किं देसेणं देसे ऋडे देसणं सव्वे कडे सव्वेणं देसे कड़े सव्वेणं सव्वे कडे ?गोयमा! णो देसेणंदेसेकडे णो
भावार्थ
द्वितीय उद्देशे में आयुष्य का स्वरूप कहा. वह मोहनीय कर्म से होवे इमलिये आगे मोहनीय कर्म का स्वरूप कहते हैं. अहो भगवन् ! क्या जीव कांक्षा मोहनीय कर्म। मिथ्यात्व मोहनीय कर्म ) करे ? हां गौतम! जीव कांक्षा मोहनीय कर्म करे. अहो भगवन् ! जैसे? हस्तादि देश से किसी वस्तुका देश आच्छादे,२ हस्तादि देशसे समस्त वस्तु आच्छादे,३ समस्त शरीर से वस्तुका देश आच्छादे, ४ समस्त शरीर से समस्त वस्तु
का आच्छादन करे; वैसे ही क्या जीव का देश कांक्षा मोहनीय का एक देश करे, जीव का एक देश सब Eकांक्षा मोहनीय कर्म करे. संपूर्ण जीव कांक्षा मोहनीय का एक देश करे, अथवा संपूर्ण जीव संपूर्ण कांक्षा
मोहनीय कर्म करे? अहो गौतमः जीव का एक देश कांक्षा मोहनीय का एक देश नहीं करे, जीव का एक देश संपूर्ण कांक्षा माहनीय कर्म नहीं करे, संपूर्ण जीव कांक्षा मोहनीय का एक देश नहीं करे, परंतु संपूर्ण जीव
१.१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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