Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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शब्दार्थ
भावार्थ
११ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी,
चारित्रांतरसे लिंक लिंगांतरसे प० प्रवचनांतरसे पा० प्रावचनांतरसे क० कल्पांतरसे म. मागीतरसे म० } लिंगतरेहि, पवयणंतरेहिं पाबयणंतरेहिं कप्पंतरेहिं, मग्गतरेहि, मयंतरेहि, भगतरेहि, में सब सावद्यका प्रत्याख्यान है और छेदोपस्थापनीय में पंचमहावत का आरोपण किया है. ४ लिंगांतर
१०४ से- लिंग जो साधु का वेष उस में शंका उत्पन्न होवे जैसे बावीस तीर्थकर के साधु जैसे शुद्ध वस्त्र मीले वैसा ग्रहण करे और प्रथम व अन्तिम तीर्थंकर के साधु प्रमाण युक्त वस्त्र धारन करे. इस तरह जो भिन्नता हे वह क्यों होवे ऐसी शंका होवे ५ प्रवचनान्तर से - प्रवचन सो आगम इस में भिन्नता होने से शंका उत्पन्न होवे. जैसे बावीस तीर्थकर के साधुओं को चार महाव्रत और प्रथम व अंतिम तीर्थंकर के माधुओं को पांच महाव्रत ऐमी भिन्नता ६ प्रावचनान्तर से - अर्थात् गीतार्थ के वचन में भिन्नता होने से- शंका करे । जैसे एक आचार्य थोडी क्रिया करते हैं. और दूसरे विशेष क्रिया करत होवे. ७ कल्पान्तर से - अर्थात् कल्प २ में भिन्नता देखकर शंका होवे जैते जिन कल्पी ननत्तपना वगैरा अतिकष्ट न करते हैं और स्थविर कल्पी वस्त्रादि सहित प्रवर्ते. ये दोनों किस प्रकार से कर्मक्षय करे वैसी शमा उत्पन्न होवे ८ मा-34 र्गान्तर से - अर्थात पूर्वापर समाचारी में भिन्नता होने से शंका उत्पन्न होवे १ मतांतर से - आचार्य के आभप्राय में भिन्नता होने मे शंका उत्पन्न होवे १० भंगान्तरले . अर्थात दीभंगी चौभंगी की विचारनाई उस में भिन्नता की समझ नहीं हाने से शंका उत्पन्न होवे ११ नयांतर से द्रव्यास्तिक पर्यायास्तिक नय में । नित्यानिस वस्तु का स्वरूप जानकर शंका उत्पन होवे १२ नियमान्तर से - जब यावज्जीव पर्यंत सामा
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी मालाप्रमादजी*