Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पदार्थ
अनुवादक-बालब्रह्मगरी मुनि श्री अमालक ऋषिजी
हुवे अ० अमायी स० समदृष्टि उ० उत्पन्न हुचे भा० कहना म० मनुष्य कि० क्रिया में स० सरागी वी. वीतरागी अ० अप्रमत्त प० प्रमत्त भा० कहना का कापुतलेशी ए. ऐसे ण. विशेष • नारकी ज० नैसे ओ० औधिक दं० दंडक त० तैसे भा० कहना ते. तेजु लेशी प० पद्मलेशी ज. जिनको अ. है ज० जैसे ओ० औधिक तक तैसे मा० कहना ण. विशेष म० मनुष्य स० सरागी वी० वीतरागी भा० कहना दु० दुःख आ० आयुष्य उ. उदीरणा आ० आहार क० कर्म ५० वर्ण ले० लेश्या म.
सुक्कलेस्साणं एएसिणं तिण्हं एकोगमो कण्हलेसणीललेस्साणंपि एगोगमो ॥ णवरं वेदणाए मायीमिच्छद्दिट्टीउववण्णगाय, अमायीसम्मविट्ठी उववण्णगाय भाणियन्वा मणुस्सा किरियासु सराग वीतराग अपमत्ता पमत्ताण भाणियव्वा ॥ काउलेस्साणवि एबमेवगमो णवरं णेरइए जहा ओहिए दंडए तहा भाणियव्वा, तेउलेस्सा, पम्हलेस्सा
जस्स आत्थि जहा ओहिओ तहा भाणियन्वा णवरं मणुस्सा सराग वीतरागा ण भाअपमत्त व प्रमत्त कहा है, परंतु कृष्ण नीललेश्यावाले मनुष्य में यह कहना नहीं; क्योंकि दोनों लेश्यावाले को संयग का अभाव होता है. कापुत लेख्या में पैसा जानना परंतु नारकी को औधिक दंडक जैसे कहना. तेजो लेश्या व पद्मलेश्या जिन को हैं; उन को आधिक दंडक जैसे कहना. मनुष्य सराग वीतराग कहे हुवे हैं वे यहांपर कहना नहीं; क्यों की तीनों लेश्यावालों को वीतरागाने का अभाव होता है. अब उद्देश के प्रारंभ से जो अधिकार आयासो गाथामे बतातेहैं. एक वचन व बहुवचन आश्रित क्या दुःख व आयुष्य
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदव सहायजी पालाप्रसादजी 2
मावार्थ