Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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शब्दार्थ
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पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र
मिथ्या दृष्टि उ० उत्पन्न हेव अ० अल्प वेदना वाले अ० अमायी स. समदृष्टि उ० उत्पन्न हुवे म. बहत वेदना भा० कहना जो० ज्योतिषी ३० मानिक को ॥ १४ ॥१० मलेशी णे. नारकी स० सर्व स. समाहारी ओ० अधिक स० सलेशी सु. शुकशी ए. इन ति. तीन में ए. एक सरिखे क. कृष्णलेशी नी नीललेशी ए. एक सरिखे ण. विशेष वे० वेदना में मा० मायी मि० मिथ्यादृष्टि उ० उत्पन्न
सुरकुमारा णवरं वेदणाए णाणत्तं । मायी मिच्छद्दिट्ठी उबवण्णगाय अप्पवेयणतरा, अमायी सम्मदिट्ठी उबवण्णगाय महावयणतरा भाणियव्वा ॥ जोइस वेमाणियाय
॥ १४ ॥ सलस्तान भी इसा सब्वे समाहारगा ओहियाणं, सलेस्साणं प्रकार की है सो बताते हैं. ज्योतिषी वैमानिक में मायी मिथ्यादृष्टि पने उत्पन्न हवे सो अल्पवेदनावाले हैं क्यों की उन को साता वेदनीय कर्ष अल्प रहता है. और अनायी सम्यदृष्टि बहुत वेदनावाले हैं क्यों की उनको साता वेदनीय कर्म विशेष रहता हे इतना ज्योतिपो व वैमानिक में असुरकुमार से विशेष है शेष सब असुरकुमार जैसे कहना ॥ १४ ॥ अहो भगवन ! लेश्या सहित नारकी क्या सरिखे आहार करनेवाले हैं ? अहो 60 गौतम : समुच्चय जीव, सलेशी व शुक्ल लेशी इन तीन का एक गमा जानना. कृष्ण व नील लेशीका एक गमा जानना,वेदना में इतना विशेषपना कि मायावी, मिथ्यादृष्टी को बहुत बेदना और अमायी सम्यग्दृष्टी को अल्पवेदना. मनुष्यपद में, क्रिया सूत्र में व औधिक (समुच्चय ) दंडक में सराग, वीतराग,,।
48पहिला शतक का दूसरा उद्देशा 940
भावार्थ
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