Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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शब्दार्थ
89600 पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मत्र
वे दना म. मनुष्य में भगवन स सर्वस सनक्रिया वाले गो गौतम णो नहीं इ. यह अर्थ स० म व के कैलेनो गौतम म. मनुष्य ति तीन प्रकार के स० समष्टि मि. मिथ्यादृष्टि म०
सममिथ्याष्टि ततहां जे. जो स. ममहाराष्ट्र ते: व नि. तीन प्रकार के मं० संयति अ. असं यति मं० संयतासंयति जे. जो सं• संयति ते वे दु० दोप्रकार के म० सराग मंगनि वी. वीतराग भयति त. तहां जे. जो वी० वीतराग संयति से० वे अ. अक्रिया वाले स० मराग संयति द. दो
समकिरिया ? गोयमा! णोइणटेसमटे । सेकेण?ण भंते ? गोयमा ! मणुस्सा तिविहा पपणत्ता तं० सम्माट्टी, मिच्छट्ठिी, सम्मामिच्छद्दिट्टी, लत्थणं ज ते सम्माहटी ते तिविहा प. तं. संजयाय असंजयाय संजया संजयाय । तत्थणजेते संजया ते दुविहा प० तं• सराग संजयाय वीयराग संजयाय, तत्थणं जे ते वीयराग संजया
तेणं अकिरिया । तत्थणं जे ते सराग संजया ते दुविहा प. तं. पमत्त संजयाय, मनुष्य के तीन भेद कहे हैं सम्यकाष्टि, मिथ्याष्टि सममिथ्याष्टिः उस में जो सम्यगदृष्टि हैं। उनके तीन भेद कहे हैं संयति, असंयति व संयतासंयति; उसमें संयति के दो भेद सरागसंयति व 00 वीतराग संयति. उसमें जो वीतराग संयति हैं वे अभिर अर्थात उन को किसी भी सांपरायिक क्रिया नहीं लगती है. जो सरागतयति हैं उनके दो भेद प्रमत्त संयति व अप्रमत्त संयति. अप्रमत्त संयति सातवे गुण स्थानवी हैं उनको एक मायाप्रत्ययिकी क्रिया लगतीहै और छठे गण स्थानवर्ती प्रमत्त संयतिको आरंभिकी व
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386पहला शतक का दूसरा उद्दशा 88883
भावार्थ