Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
१०३ अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
आरंभिक प० प० पारिग्रहिकी मा० मायाप्रत्ययिकी अ० अप्रत्याख्यानक्रिया मि० मिथ्यादृष्ठि को पं० पांच क्रिया आ० आरंभिकी जा० यावत् मि० मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी ए० ऐसे स० सममिथ्या दृष्टि को भी } ॥ ७ ॥ णे० नारकी मं० भगवन् स० सर्व स० सम आयुष्यवाले स० सम उत्पन्न गो० गौतम गो० नहीं
मायावत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया । तत्थणं जे ते मिच्छद्दिट्ठी तेसिणं पंचकिरिया ओ कळंति तं • आरंभिया जाव मिच्छादंसणवत्तिया । एवंसम्म मिच्छद्दिीपि सेतेणट्टेणं गोयमा ॥७॥ णेरइयाणं भंते सव्वेसमाउया सव्वे समोववण्णगा ? गोयमा ! { क्रिया
लगती हैं ? पृथिव्यादिक का आरंभसो आरंभिकी २ शरीरादिपर ममत्व सो पारिग्रहिकी ३ वपना व क्रोध, मान व माया युक्त स्वभावसो मायाप्रत्ययिकी और ४ निवृत्ति के अभाव से जो क्रिया (लगेसो अप्रत्याख्यान. मिथ्यादृष्टी नारकी को पांच क्रिया लगे. उक्त चार क्रियायों में मिथ्यादर्शन प्रत्यायक {क्रिया वढी. और ऐसे ही सम्मपिथ्यादृष्ट्री को जानना, इस कारण से अहो गौतम ! नारकी को सरिखि क्रिया नहीं हैं. ॥ ७ ॥ अहो भगवन् ! सब नारकी सरीखे आयुष्य वाले हैं ? और सब सरीखे - एक साथ उत्पन्न होनेवाले हैं ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं हैं. अहो भगवन् ! किस कारण से यह अर्थ योग्य नहीं हैं ? अहो गौतम ! नारकी के चार भेद कहे हैं. १ कितनेक सम आयुष्य वाले { हैं और एक साथ उत्पन्न होनेवाले हैं २ कितनेक सम आयुष्यवाले हैं विषम उत्पन्न होते हैं अर्थात्
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