Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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शब्दार्थ
जा. यावत् मिमिथ्या दर्शन प्रत्यायकी से वह ते. इसलिये पु० पृथ्वी काया स० समायुष्य वाले स. समवर्ण वाले जा जैसे णे नारकी त• तैसे भा० कहना ॥ १० ॥ ज० जैसे पु. पृथ्वी काया त• तैसे जा. यावत् च० चतुरेन्द्रिय ।। ११॥ पं० पंचेन्द्रिय तियेच ज० जैसे ण० नारकी णा० नानाप्रकार कि० क्रियामें पं० पंचेन्द्रिय तिर्यंच भं० भगवन् स० सर्व स. समक्रिया वाले गो गौतम णो नहीं इ० यह अर्थ स. समर्थ से. वह के. केमेगो गौतम पं० पंचेन्द्रिय तिर्यच ति तीन प्रकार के स० समष्टि मि.
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
तियाणं पंचकिरियाओ कजति, तंजहा - आरंभिया जाव मिच्छादसणवत्तिया. सेतेणदेणं. पढविकाइया समाउया समोचवण्णगा? जहाणेरइया तहाभाणियवा॥१०॥ जहा पुढविकाइया तहा जाव चउरिदिया ॥ ११ ॥ पंचिंदिय तिरिक्खजोणिया
जहा णेरइया, णाणत्वं किरियासु ॥ पांचंदिय तिरिक्ख जोणियाणं भंते सव्वे समाकक्रिया वाले हैं. ? अहो भगवन् ! वह कैसे ? अहो गौतम ! मर पृथ्वीकायिक जीव मायावी व मिथ्या दृष्टी हैं, उनको अवश्यही आरंभिकी गायत् मिथ्या दर्शन प्रत्ययिकी पांच क्रियायों लगती हैं. इसी से पृथ्वी कायिक जीव समक्रिया वाले हैं. सब पृथ्वी कायिक जीव सरिखे आयुष्य वाले व साथ उत्पन्न होने वाले हैं? इसका सब अधिकार नारकी जो कहना।।१०॥ जैसे पृथ्वी कायाका अधिकार कहा वैसेही अप्काय तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, द्वीन्द्रिय, तेइन्द्रिय व चतुरेन्द्रिय का जानना. यहांपर वडा शरीर व
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सु वदेवतहायजी मालामसादजी *
भावार्थ
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