Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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शब्दार्थ
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 8%
भावार्थ
ना ण विशेष ककर्म व०वर्ण ले लेश्या प०कहना पु पूर्वोत्पन्न म०बहुत कर्मवाले अ० अविशुद्धवर्ण वाले अ०. अविशुद्ध लेश्यावाले प०पीछे उत्पन्न हुवे प प्रशस्त से शेष तं० तैसे एक ऐसे जा० यावत् थ०स्थनित कुमार
तहा भाणियब्वा, णवरं कम्म, वण्ण, लेस्साओ, परिवण्णेयवाओ पुव्योववण्णगा महाकम्मतरा, अविसुद्ध वण्णतरा, अविसुद्ध लेसतरा, पच्छोववण्णगा पसत्या से
संतंचेव. एवं जाव थणियकुमाराणं ॥ ९ ॥ पुढविकाइयाणं आहारकम्म वण्ण लेस्सा हैं वे बहुत पुद्गलों का आहार करते हैं, और जो छोटे शरीर वाले होते हैं वे अल्प पुद्गलों का आहार करते हैं. जघन्य चतुर्थभक्त उत्कृष्ट एक हजार वर्ष में आहार की इच्छा उत्पन्न होवे. जघन्य सातस्तोक में उत्कृष्ट एकपक्ष में श्वासोश्वास लेते हैं, जो पहिले उत्पन्न हुवे हैं वे महाकर्मी, अविशुद्ध वर्ण वाले, अविशुद्धले श्या वाले हैं और जो पीछे उत्पन्न हुवे हैं वे अल्प कर्म वाले, विशुद्ध वर्ण व विशुद्ध लेश्या वाले हैं. क्यों की पहिले उत्पन्न हुवे देवताओ अतिलुब्धता से दीव्य सुखों को भोगवकर बहुत शुभ कर्म का क्षय करते हैं और अशुभ कर्म का संचय करते हैं इस से कितनेक तिर्यंच पृथ्वी पानी वनस्पति में उत्पन्न होते हैं. और पीछे से उत्पन्न होने वाले के पुण्य के दल रह जाने से विशुद्ध वर्ण लेश्या वाले होते हैं शेष सब , अधिकार नारकी जैसे कहना जैसे असुरकुमार का कहा वैसे ही स्तनित कुमार का जानना. ॥ ९ ॥ पृथ्वी
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी*