Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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शब्दाथ
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
उत्पन्न हुवे ते वे अ० अविशुद्ध लेश्यावाले ॥५॥णे. नारकी भ• भगवन् स० सर्व म. समवेदनावाले गो० गौतम णो० नहीं इ० यह अर्थ स० समर्थ णे० नारकी दु० दोपकार के स० संशी अ० असंझी
वण्णगा तेणं विसुद्धलेसतरागा । तत्थणं जे ते पच्छोववण्णगा तेणं अविसुद्ध लेसतरागा । सेतेणट्रेणं गोयमा ! ॥ ५ ॥ जेरइयाणं भंते सव्वे समवेदणा? गोयमा ! णोइणटे समढे । सेकेण?णं भंते ? गोयमा ! णेरइया दुविहा पण्णत्ता तंजहा , सगिभूयाय, असण्णिभूयाय । तत्थणं जेते सण्णिभूया तेणंमहावेदणा, तत्थणं जे लेश्या वाले होते हैं; क्यों की उन को अल्प कर्म रहते हैं और जो पीछे उत्पन्न हुवे हैं वे अशुद्ध लेश्या वाले हैं क्यों कि उन को बहुत कर्म रहते हैं इसलिये अहो गौतम ! सब नारकी सरिखी लेश्या वाले नहीं हैं ॥ ५ ॥ अहो भगवन् ! सब नारकी को सरिखी वेदना है ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है हैं. किस कारण से ? अहो गौतम ! नारकी के दो भेद १ संज्ञाभूत सो समदृष्टि व असंज्ञीभूत सो मि-2 थ्यादृष्टि. उस में जो संज्ञी भूत समदृष्टि हैं वे बहुत वेदना वाले हैं क्यों कि सम्यग् ज्ञान से पूर्वकृत कर्म विपाक की स्मति होनेसे अती दःख होवे और पश्चाताप करे कि मैंने अरिहंत प्ररूपित धर्म पाला नहीं इस कारण से उन को मानसिक दुःख बहुत होवे. और जो असंज्ञीभूत-मिथ्यादृष्टि हैं वे अल्पवेदना वाले , हैं क्यों कि वे अपने कृतकर्म को नहीं जानते हैं इस से उन को मानसिक दुःख अल्प रहता है. कितनेक
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ