Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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शब्दार्थ Iste नारकी भ भगवन् स०. सर्व स० समवर्णवाले गो० गौतम णो• नहीं इ० यह अर्थ स० समर्थन
से वह के० कैसे गो० गौतम ने जो पु० पूर्वोत्पन्न ते वे वि० विशुद्ध वर्णवाले त० तैसेही से• वह ते इसलिये ॥ ४॥णे. नारकी भं० भगवन् स० सर्व स० सम लेश्यावाले गो० गौतम पो० नहीं इ०१०७ यह अर्थ स० समर्थ त० तहां जे० जो पु० पूर्वोत्पन्न ते वे वि० विशुद्ध लश्यावाले जे० जो ५० पीछे ?
मा ! णोइणट्टे समटे । सेकेणटेणं तहचेव ? गोयमा ! जे ते पुब्बोक्वण्णगा तेणं से विसुद्ध वण्णतरागा तहेव । सेतेणट्रेणं गोयमा ॥४॥णेरइयाणं भंते सव्वे समलेस्सा ? गोयमा ! णोइणटे समटे । सेकेणटेणं जाव णो सव्वे समलेस्सा ? गोयमा ! हेरइया
दुविहा पण्णत्ता तंजहा पुव्वोववण्णगाय, पच्छोक्वण्णगाय तत्थणं जे ते पुवोव
वर्ण वाले हैं ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं हैं. क्या कारण से ? अहो गौतम ! नारकी के दो भेद पहिले भावार्थ
उत्पन्न हुवे और पीछे उत्पन्न, जो पहिले उत्पन्न हुवे वे विशुद्ध वर्णवाले होते हैं, और पीछे जो उत्पन्न हुवे हैं वे विशुद्ध वर्ण वाले नहीं हैं; इसलिये अहो गौतम ! सब नारकी सम वर्ण वाले नहीं हैं ॥ ४ ॥ अहो । भगवन ! सब नारकी मरिखि लेश्या वाले हैं ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है. क्या कारण है?
अहो गौतम! नारकी के दो भेद ? पहिले उत्पन्न हुवे व २ पीछे उत्पन्न हुये. जो पहिले उत्पन्न हुवे हैं वे विशुद्ध है की आपेक्षा से दश हजार वर्ष की स्थिति वाला महाकर्मीहोसके ! अर्थात् नहीं होवे.
388 पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती)
१०3-383पहिला शतकका दूसग उद्देशा
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