Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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शब्दार्थ
पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
जे. जो सं० संज्ञीतेचे मबहूतपेदना वाले जे. जो अ. असंज्ञी अ. थोडीवेदनावाले ॥६॥णे. नारकीभंभगवन् स० सर्व स० समक्रियावाले गो गौतम नो नहीं इ० यह अर्थ स० समर्थणे नारकी ति तीन प्रकार केस०१ सम्यक् दृष्टि मि० मिथ्यादृष्टि स० सममिथ्यादृष्टि ने जो स० समदृष्टि ते० उन को च० चारक्रिया प० प्ररूपी आ०
ते असण्णिभूया तेणं अप्पवेयणतरागा से तेणटेणं गोयमा ॥ ६ ॥णेरइयाणं भंते सव्वे समाकरिया ? गोयमा ! णोइणटे सम? । सेकेणटेणं भंते ? गोयमा ! णेरइया है तिविहा प० तं० सम्मट्ठिीय, मिच्छाट्ठिीय, सम्ममिच्छट्ठिीय । तत्थणं जेते ।
सम्मदिट्ठी तेसिणं चत्तारि किरियाओ पण्णत्ताओ तं० आरंभिया, परिग्गहिया, ऐसा भी अर्थ करते हैं कि संज्ञी पंचेन्द्रिय नारकी में उत्पन्न होवे सो संज्ञीभूत वे बहुत वेदनावाले होवे क्योंकि अशुभ अध्यवसाय से बहुत अशुभ कर्म का बंध कीया और इस से नरक में उत्पन्न हुवे. अ असंज्ञी पंचेन्द्रिय प्रथम नरक में असंज्ञीपने उत्पन्न होवे वे अल्प वेदनावाले होवे क्यों कि उनको अति तीव्र अशुभ अध्यवसाय नहीं होते हैं. अथवा संज्ञीभूत सो पर्याप्ता बहुत वेदनावाले और असंज्ञीभूत सो अपर्याप्ता अल्पवेदना वाले, इसलिये अहो गौतम ! सब नारकी सरिखी वेदनावाले नहीं हैं ॥ ६ ॥ अहो भगवन् ! सब नारकी सम क्रियावाले हैं ? अहो गौतम यह अर्थ योग्य नहीं है. क्यों कि नारकी के तीन भेद कहे हैं. १ समदृष्टी, २ मिथ्यादृष्टी ३ सममिथ्यादृष्टि. उस में जो समदृष्टी हैं उन को चार
४. ०४ पहिला शतक का दूसरा उद्देशा
भावार्थ
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