Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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शब्दार्थ यह अर्थ स० समर्थ से वह के कैसे भ० भगवन् ए. ऐसा कहा जाता है गो० गौतम णे० नारकी -दु० दोपकार के पु० पहिले के उत्पन्न प० पश्चात् उ० उत्पन्न त० तहां जे० जो पु० पूर्वोत्पन्न त
त० तहां जे० जो पु० पूर्वोत्पन्न ते वे अ० अल्प कर्म वाले त० तहां ज० जो ५० पश्चात् उ० उत्पन्न ते वे म० महाकर्म वाले ॥ ३॥ ० 1. वुच्चइ? गोयमा ! णेरइया दुविहाप०तं. पुव्योववण्णगाय पच्छोववण्णगाय तत्थणं जे ते
पुवोववण्णगा तेणं अप्पकम्मतरा तत्थणं जे ते पच्छोववण्णगा तेणं महाकम्मतराय
सेतेणटेणं गोयमा एवं वुच्चइ ॥ ३ ॥ णेरइयाणं भंते सव्वे समवण्णगा? गोय- अ गौतम ? यह अर्थ योग्य नहीं हैं. अहो भगवन् ! किस कारन से यह अर्थ योग्य नहीं है ? अहो गौतम! नारकी के दो भेद १ पूर्वोत्पन्न-पहिले उत्पन्न हुवे २ पश्चादुत्पन्न-पीछे से उत्पन्न हुवे उस में जो पहिले उत्पन्न हुवे हैं वे अल्पकर्मवाले हैं क्योंकी उनों ने आयकर्य तथा अन्य कर्म भेदे हुवे हैं व जो पीछे उत्पन्न हुवे हैं वे बहुत कर्मवाले हैं क्योंकी उनों ने आयुष्य कर्म बहुत थोडा छेदा हुवा है * इमलिये सब नारकी सरीख कर्म वाले नहीं हैं. ॥ ३ ॥ अहो भगवन् ! क्या सब नारकी सरीखे
* यहां सरिखि स्थिति वाले नारकी को अंगीकार करके यह सूत्र कहा है; अन्यथा कोइ एक | सागरोपम की स्थिति वाला नारकी बहुत स्थिति भोगव कर शेष एक पल्योपम रहे पीछे दूसरा दश हजार 33 वर्ष की स्थिति वाला नारकी उत्पन्न होवे तो; क्या पहिले उत्पन्न हवा शेष पल्योप मके आयुष्य वाला नारकी { *
*3 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी 87
भावार्थ
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायनी ज्वालाप्रसादजी *