Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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शब्दार्थ
अ० अकामक्षुधा अ० अकाम ब्रह्मचर्य अ० अकाम सी० शीत आ०आतप दं० दश म० मशक अ० स्नान राहत स० स्वेद ज० जल म० मल पं. कर्दम ५० परिदाह अ० थोडे भु० बहुत का. काल अ० आत्मा का प० कष्टदेवे १० कष्टदेकर का काल के अवसर में का० काल कि० करके अ० अन्यतर वा. वाण व्यतर दे० देवलोक में दे० देवपने उ० उत्पन्न भ० होवे के० कैसे भं० भगवन् वा० वाणव्यंतर दे० देवता
अकाम बंभचेरवासेगं, अकामसीतातवदंसमसगं, अण्हाणगसेयजल्लमल पंकपरिदाहण अप्पतरोवा भुजतरोवा कालं अप्पाणं परिकलेसंति परिकलेसइत्ता; कालमासे कालंकिच्चा, अण्णयरसु वाणमंतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवति ॥ केरिसाणं भंते तेसिं वाणमंतराणं देवाणं देवलोगा प०? गोयमा! से जहा नामए इह मणुस्स
लोगंमि असोगवणेइवा सत्तवण्णवणेइवा, चपयवणेइवा, च्यवणेइवा, तिलगवणेइवा, है भावार्थ काल के अवसर में काल करे तो वाणव्यंतर देवलोक में देवतापने उत्पन्न होवे. अहो भगवन् ! उन
चाणव्यंतर देवता के देवलोक कैसे हैं ? अहो गौतम जैसे मनुष्य लोक में अशोकवन, सप्तपर्णवन, चंपकवन अ आम्रवन, तिलक वन, अलंबुक ( तुम्धी का) वन, न्यग्रोधवन, छत्राहवन, अशनवृक्षवन, शणवृक्ष के वन का
अलसीका वन, कुसुभवन, सिद्धत्थ-श्वेतसरसवका वन, बंधजीव सो मध्यान्ह के कुसुमका वन वर्ग 18 सदैव कुसुमों से फुले हुवे, मंजरी, गुच्छ:, गुलम, बेल, पत्र, अन्य अनेक वृक्षोंकी श्रेणियों के समुह व
2.9 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *