Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
पंचपाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
१५० पद्म गो० गौर उ० उग्रतप दि० दीप्ततप तप्तप्ततप मन्महातप घो० घोरतप उ० उदार घो० घोर घो० घोर गुण घो० घोरतपस्त्री घो० घोर ब्रह्मचारी उ० सुश्रुषा रहित सं० संक्षिप्त वि० बहुत ते तेजस लेश्या च० चौदहपुर्वी च० चारणा० ज्ञान के उ० धारक स० सर्व अक्षर स० सन्निपाति स० श्रमण भ० भगवान् म० महावीर से अ० दूर नहीं नजदीक नहीं उ० ऊर्ध्वजानु अ० अघोशिर झा० ध्यान कोठे में उ० तत्रे, तत्ततवे, महातवे, घोरतवे, उराले, घोरे, घोरगुणे, घोर तवस्सी घोर बंभचेरवासी, उच्छूढ सरीरे, संखित्तविउल तेउलेस्से, चउदसपुब्बी, चउणाणोवगए, सव्वक्खरसण्णिवाती, समणस्स भगवओ महावीरस्स अदृरसामंते उड्डजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठो
{ की अवगाहनावाले, समचतुस्र संस्थान से संस्थित, वज्रऋषभ नाराच संघयण युक्त, कनकके बिन्दुसमान व पद्म कमल समान गौर वर्णवाले, उग्रतपस्वी, दीप्त तपवाले, आशंसादि दोष रहित, महत् तप करने वाले, घोर तप करनेवाले, प्रधान तपसे पार्श्वस्थादि जीव को भय उपजानेवाले, परीषद व इन्द्रियादि रिपु को नाश करने में घोर, अन्य जीव नहीं आचर सके वैसे घोरगुणों का धारन करनेवाले, घोर तपस्त्री, घोर ब्रह्मचारी, शरीर की शुश्रूषा का त्याग करनेवाले, अनेक योजन प्रमाण क्षेत्राश्रित वस्तुदहन में समर्थ तेजोलेश्या को संकुचित करनेवाले, उत्पातादि चौदह पूर्व के धारक, केवल ज्ञान वर्जित चार ज्ञान के धारक व सब अक्षर के संयोगको जाननेवाले गौतम स्वामी श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी से
- पहिला शतकका पहिला उद्देशा -