Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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शब्दार्थIयावत णो नहीं अ० अचलित क. कर्म णि निर्जरते हैं।॥२६॥ए ऐसे जा० यावत् २० वनस्पति काया को
गुण विशेष ठि० स्थिति व. कहना जा० जो ज० जिनका उ. ऊश्वास बे० बेमात्रा ॥ २७॥ बे० बे. इन्द्रिय की ठि• स्थिति भा० कहना उ० उश्वास बे० बेमात्रा ॥ २८ ॥ बेलवे द्वीन्द्रिय को आ आहारकी पु० पृच्छा अ० अनाभोग निवर्तित त० तैसे त० तहां जे० जो आ० आभोगनिवर्तित अ०
परिणमंति, सेसं जहा णेरइयाणं जाव णो अचलियं कम्मं णिजरेति ॥ २६॥ एवं जाव वणरसइ काइयाणं, णवरंठिती वण्णेतव्वा जा जस्स उस्सासो बेमायाए॥ २७॥
बेइंदियाणं ठिती भाणियव्वा, ऊसासो बेमायाए. ॥ २८ ॥ बेइंदियाणं आहारे पुच्छा, भावार्थ | सब अधिकार नारकी जैसे कहना ॥ २६ ॥ जैसे पृथ्वी कायिक जीवों का अधिकार कहा वैसे ही अपका
यिक, तेउकायिक, वायुकायिक व वनस्पति कायिक जीवोंका जानना. इस में मान स्थिति भिन्नता बतलाइ है सो कहते हैं-सब की जघन्य अंत मुहूर्त की उत्कृष्ट अपूकायिक जीवों की सात हजार
की, तेउकायिक जीवों की तीन अहो रात्रि, वायु कायिक जीवों की तीन हजार वर्ष की वनस्पति कायिक जीवों की दश हजार वर्ष की और श्वासोश्वास मर्यादा रहित ॥ २७॥ द्वीन्द्रिय की स्थिति बारह वर्ष की कही और श्वासोश्वास मर्यादा रहित जानना ॥२८॥ अहो भगवन् ! द्वीन्द्रिय कैसे आहार करते हैं ? अहो गौतम ! आहार के दो भेद आभोगनिवर्तित व अनाभोगनिवर्तित. उस में आभोग
विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सत्र 48+
888 पहिला शतकका पहिला उद्देशा -
पंचमाङ्ग विवाह
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