Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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शब्दाथ इन्द्रिय घा० घ्राणेन्द्रिय जि० जिव्हेन्द्रिय फा० स्पर्शेन्द्रियपने भु० वारंवार प० परिणमें ॥ ३२॥ पं० पंचे
न्द्रिय:ति तिर्यंच ठि० स्थिति भ. कहना ऊ उश्वास बे० बेमात्रा आ० आहार अ० अनाभोग निवर्तित पने अ० समय समय में अ० आंतरा रहित आ० आभोग निवर्तितपने ज जघन्य अ० अन्तर्मुहूर्त उ० उत्कृष्ट छ. छठ्ठ भक्त में से शेष ज. जैसे च. चतुरेन्द्रिय जा. यावत् च. चलित कर्म णि निर्जरे ॥ ३३ ॥ * 'परिणमंति चउरिदियाणं चक्टुंदिय घाणिदिय जिभिदिय फासिंदियत्ताए भुजो भुजो
परिणमंति ॥ ३२ ॥ पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियाणं ठिई भणिऊण ऊसासोबेमायाए आहारो अणाभोगाणिव्वात्तए अणुसमइयं अविरहिओ आभोनिव्वत्तिओ जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं छट्ठभत्तस्स सेसं जहा चउरिदियाणं जाव चलियं
कम्मं णिजरेति ॥३३॥ एवं मणुस्साणवि. गवरं आभोगणिव्वात्तए जहण्णेणं अंतो
चाइन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिव्हेन्द्रिय व स्पर्शेन्द्रियपने परिणमते हैं ॥ ३२ ॥ तिर्यंच पंचेन्द्रिय की स्थिति भावार्थ
Eजघन्य अंतमुहूर्त की उत्कृष्ट तीन पल्योपम की. उन का श्वासोश्वास मर्यादा रहित जान्ना. उन को
अनाभोग निवर्तित आहार प्रति समय विरह रहित होता है. और आभोग निवर्तित आहार जघन्य अंत र्मुहूर्त में उत्कृष्ट छह भक्त सो दो दिन में. (देवकुरु उत्तर कुरु के क्षेत्र के तिर्यंच आश्रित.) और चलित कर्म की निर्जरा करेंगे वहांतक का शेष सब अधिकार चतुरोन्द्रिय. जैसे कहना ॥ ३३॥ ऐसे ही
2 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 8
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *