Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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शब्दार्थ भोगवा अ० नही स्पर्शा अ० अनंतगुणा ॥ ३० ॥ बे० बेइन्द्रिय भ० भगवन् पो० पुद्गल आ° आहारपने
गि० ग्रहण करते हैं ते. वे पो० पुद्गल की० कीसतरह भु० वारंवार प० परिणमते हैं गो० गौतम जि• जिव्हेन्द्रिय फा• स्पर्शेन्द्रियपने बे० बेमात्रा भु० वारंवार प० परिणमते हैं बे० बेइन्द्रिय भं• भगवन् । पु. पूर्वाहारी पो० पुगल ५० परिणमा त० तैसे जा. यावत् च० चलित कर्म णि निर्जरे ॥ ३१ ॥ ते तेइन्द्रिय च० चतुरेन्द्रिय णा विविध प्रकार की ठि० स्थिति जा. यावत् अ० अनेक भा० भाग सहस्र अ०
अणासाइजमाण्ण, अफासाइज्जमाणा अणंतगणा ॥ ३० ॥ बेइंदियाणं भंते पोग्गला o आहारत्ताए गिण्हंति तेणं तेसिं पोग्गला कीसत्ताए भुजो भुज्जो परिणमंति ? गोयमा !
जिभिदिय फासिंदिय बेमायाए भुजो भुज्जो परिणमंति ॥ बेइंदियाणं भंते पुवाहारिया
पोग्गला परिणया तहेव जाव चलियं कम्मं णिजरेंति ॥ ३१ ॥ तेइंदिय चउरिंदिभावार्थ थोडे आस्वाद नहीं कराये हुवे पुद्गल उस से अस्पर्शमान पुद्गल अनंत गुने कहे हैं ॥ ३० ॥ अहो भगवन् !
जो पुद्गल द्वीइन्द्रिय आहारपने ग्रहण करते हैं वे कैसे परिणमते हैं ? अहो गौतम ! वे आहार के पुद्गल १
वेइन्द्रिय को जिव्हेन्द्रियपने स्पर्शेन्द्रियपने व वमात्राले परिणमते हैं. अहो भगवन् ! बेइन्द्रिय को पहिले के आहारे में लहुवे पुद्गल परिणमते हैं यावत् चलित कर्म की निर्गरा करते हैं वगैरह सब अधिकार पहिले जैसे कहना * "॥ तेइन्द्रिय की स्थिति ४०. दिन की व चतुरेन्द्रिय की स्थिति ६ माम की अन्य सब अ
का अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 8
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *