Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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शब्दार्थ ज० जैसे लो० रोम आहार प० कवल आहार जे. जो पो० पुद्गल लो० रोम आहारपने गि० ग्रहण करते 11 ते वे स० सर्व अ० निर्विशेष आ० आहारकरे जे० जो० पो० पुद्गल प० कवल आहारपने गि• ग्रहण
करतेहैं पो० पुद्गल को अ० असंख्यात भाग को अ० आहारकरे अ० अनेक भाग स० सहस्र अ० नहीं भोगवे अ० नहीं स्पर्श वि० विध्वसंपाते हैं ए० इन पो० पुद्गल को अ० नहीं भोगवा न० नही स्पर्शा क० कौन से अ० थोडे ब० बहुत तु. सरिखे वि० विशेषाधिक गो० गौतम स०सर्व से थोडा पो पुद्गल अ० नहीं
पोग्गले पक्खेवाहारत्ताए गिण्हंति तेसिणं पोग्गलाणं असंखेजइ भागं आहारैति. अणेगाइंचणं भागसहस्साई अणासाइजमाणाई अफासाइजमाणाई विद्वंसमावज्जइ ॥ एएसिणं भंते पोग्गलाणं अणासाइजमाणाणं अफासाइजमाणाणं य, कयरे २ हिंतो अप्पावा, बहुलावा, तुल्लावा, विसेसाहियावा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पोग्गला
ग्रहण करते हैं उन सबै पुद्गलों का आहार करते हैं. और जो पुद्गल प्रक्षेप आहारपने ग्रहण किये जाते भावार्थ
हैं, उन का असंख्यात में भागमें आहार करते हैं, और अनेक सहस्र भाग नहीं आस्वादते व नहीं स्पर्शते । | उन का विध्वंस होता है. अहो भगवन् ! नहीं आस्वादन किये हुवे व नहीं स्पर्श हुवे पुद्गलों में से
कोनसा अल्प व बहुत है ? अथवा तुल्य है या विशेषाधिक है ? अहो गौतम ! सब से
पंचमांम विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र
388 <3 पहिला शतक का पहिला उद्देशा 8
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