Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्रीपालक असिनी
असंख्यात समय अ अन्तर्मुहूर्त बे० चेमाचा आ० आहार की इच्छा स० उत्पन्न होने से शेष त तैसें जा यावत् अ० अनंत भाग आ- आखादे ॥ २१ ॥ ० इन्द्रिय भ० भगवन जे. जो पो० पुद्गल आ० आहारपने गि० ग्रहण करते हैं ते. वे कि क्या स सर्व आ. आहार करते हैं णो नहीं म. सर्व आ० आहार करते हैं गो. गौतम वे. वेइन्द्रिय को दोपकार का आ० आहार प. कहा तं. वह
अणाभोगणिव्वत्तिः तहेव ॥ तत्थणं जेसे आभोगणिव्वत्तिए सेणं असंखेज समइए, अंतोमुहात्तिए बमायाए आहारटे समुप्पजइ. सेसं तहेव जाव अणंतभागं आसायंति ॥ २९ ॥ बेइंदियाणं भंते जे पोग्गले आहारत्ताए गिण्हति ते किं सव्वे आहारति, णो सव्वे आहारैति? गोयमा ! बेइंदियाणं दविहे आहारे पण्णत्ते तंजहा लोमाहारेय पक्खेवाहारेय । जे पोग्गले लोमाहारत्ताए गिण्हति ते सव्वे अपरिसेसिए आहारैति. जे
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी मालाप्रसादजी *
भावार्थ
निवर्तित आहार असंख्यात ममयिक अंतर्मुहर्त में मर्यादा रहित आहार करे. अन्य यावत अनंत भाग का आस्वादन करे वहांतक का मव अधिकार पहिले जैसे कहना ॥ २० ॥ अहो भगवन् : इन्द्रिय जितने पुद्गलों को आहार के लिये ग्रहण करते हैं उन सब का क्या वे आहार करते हैं या मब का आहार नहीं करते? अहो ग तय ! दहिन्द्रिय के आहार के दो भेद कहे हैं. १ रोम आहार सो ओघ से वर्षादि समय में जो पुद्गलों प्रवेश करे और २ प्रक्षेप आहार सो करल रूप. इम में जो पुद्गल रोम आहारपने