Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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ब्दाथ
लो. राता हा०पीला मु० शुक्ल गं० गंधसे सु० सुरभिगंध दु० दुरभिगंध र० रस से तितिक्तादि फा० स्पर्श से क. कर्कश आदि मे० शेष त० तैसे णा. जानना क. कीतना भाग आ० आहार करते हैं का? कीतना भाग फा० स्पर्शते हैं गो० गौतम अ० असंख्यात में भाग आ० आहार करते हैं अ० अनंत में भाग फा० स्पर्शते हैं जा० यावत् ते० उनको पो० पुद्गल की० कीस तरह भु० वारंवार प० परिणमते हैं। गो० गौतम फा० स्पर्शेन्द्रियपने बे० बेमात्रा भु० वारंवार प. परिणमते हैं शेष ज. जैसे णे नारकी जा
५, फासओ कक्खडाइं ८, ॥ सेसं तहेव णाणत्तं कइभागं आहारेंति, कइभागं फासेंति ? गोयमा ! असंखेजइ भागं आहारति अणंतभाग फासंति । जाव तेणं
पोग्गला कीसत्ताए भुजो भुजो परिणमंति ? गोयमा फासिदिय बेमायाए भुजो भुजो
दिशा का आहार करे. वर्ण से काला, नीला, रक्त, पीला व शुक्ल पुद्गलोंका आहार करें, गंध से सुरभिगंध से भावार्थ
व दुरभिगंध का आहार करें, रस से तिक्तादि पांचा रस का आहार करें और स्पर्श से कर्कशादि आठों स्पर्श का आहार करें. शेष जैसे नारकी का कहा वैसे ही कहना. परंतु इतना विशेष जानना कि
कितना भाग का आहार करे व कितना भाग आस्वादे ? अहो गौतम ! असंख्यात भाग का आहार मेंकरे, व अनंत में भाग में आस्वादे. वे पुद्गल कैसे परिणमते हैं ? अहो गौतम ! वे पुदलों स्पर्शेन्द्रियपने
परिणमे अथवा विषम मात्रा या विविध मात्रा से वारंवार परिणमे यावत चलित कर्म निर्जरे वहां तक का शेष
203 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी *