Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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शब्दार्थ
अनुवादक-बालब्रह्मचरािमुनि श्री अमोलक ऋषिजी में
गौतम ज० जघन्य अं० अन्तर्मुहुर्त उ० उत्कृष्ट वा० बावीसवर्ष स० सहस्र की. ॥ २४ ॥ पु. पृथ्वी * काया भं० भगवन के. कितना काल आ० थोडा श्वास ले पा बहुत श्वास ले ऊ ऊंचा श्वासले नी० नीचाई से श्वास ले गो. गौतम बे० बेमात्रा ॥ २५ ॥. पु. पृथ्वी काया आ० आहारार्थी हैं. हां गो०११ गौतम आ० आहार के अर्थी पु० पृथ्वी काया को केः कितना काल में आ० आहार की इच्छा स०
जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई ॥ २४ ॥ पुढविकाइयाणं भंते केवइयकालस्स आणमंतिवा, पाणमंतिवा, ऊससंतिवा, नीससंतिवा ? गोयमा! बेमायाए आणमंतिवा पाणमंतिवा, ऊससंतिवा नीससंतिवा ॥ २५ ॥ पुढविकाइयाणं
भंते ! आहारट्ठी ? हंता गोयमा ! आहारट्ठी । पुढविकाइयाणं भंते केवइय कालस्स जानना ॥ २३ ॥ अहो भगवन् ! पृथ्वी काया की कितने काल की स्थिति कही ? अहो गौतम ! जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट २२ हजार वर्ष की ॥ २४ ॥ अहो भगवन् ! पृथ्वीकाया कितने काल में श्वासोश्वास लेते हैं ? अहो गौतम ! पृथ्वी कायाके जीव वे मात्रा से श्वासोश्वास लेवे अ लेने की मर्यादा नहीं है ॥ २५ ॥ अहो भगवन् ! पृथ्वी कायिक जीवों क्या आहार के अर्थी हैं ? हां गौतम ! वे आहार के अर्थी हैं. अहो भगवन् ! उन को आहार की इच्छा कितने काल में उत्पन्न होती है है ? अहो गौतम ! उन को प्रति समय विरह रहित आहार की इच्छा उत्पन्न होती है. अहो भगवन ! पृथ्वी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भाव
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