Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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शब्दार्थनिवर्तित त० तहां जे० जो अनाभोग निवर्तित से उनको अ० समय समयमें अ०आंतरा रहित आ० आहार ।
की इच्छा स० उत्पन्न होवे त० तहां जे. जो आ० आभोग निवर्तित से उनको जनघन्य च० चतुर्थभक्त उ. उत्कृष्ट दि० दिवस पृथक् आ० आहार की स० इच्छा उत्पन्न होवे से शेष ज. जैसे अ० असुरकुमार जा. यावत् च० चलित क० कर्म णि निर्जरते हैं ॥ २२॥ ए. ऐसे मु०सुवर्ण कुमार को भी जा० यावतू थ० स्तनित कुमार को ॥२३॥ पु. पृथ्वी काया की मं० भगवन के० कितना काल की ठि० स्थिति गो०१ में
आभोगाणव्वात्तिएय, अणाभोगनिव्वत्तिएय । तत्थणं जे से अणाभोग णिव्वत्तिए से अणुसमयं अविरहिए आहारट्टे समुप्पज्जइ, तत्थणं जे से आभोग णिव्यत्तिए सेजहण्णेणं चउत्थभत्तस्स, उक्कोसेणं दिवस पुहुत्तस्स आहारट्टे समुप्पज्जइ, सेसं जहा असुरकुमारणं जाव चलियं कम्मं णिजरेंति ॥ २२ ॥ एवं सुवण्णकुमाराणवि जाव
थणियकुमाराणंति ॥२३॥ पुढविकाइयाणं भंते केवइयंकालंठिई पण्णत्ता ? गोयमा! भाबाथे १ आरोग निवर्तित, २ अनाभोग निवर्तित. उस में अनाभोग निवर्तित आहार की निरंतर समय २ में अ-350
विच्छिन्नपन्ने इच्छा उत्पन्न होती रहती है और आभोग निवतित आहार की इच्छा जघन्य चतुर्थ भक्त । उत्कृष्ट दिन प्रथकू अर्थात् दो दिन से नव दिन तक शेष चलित कर्म निर्जरे वहां तकका अधिकार असुर/ota कुमार जैसे कहना ॥ २२ ॥ जैसे नागकुमार का कहा वैसे ही सुवर्णकुमार यावत् स्तनित कुमारकाई।
पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र -2383
पहिला शतक का पहिला उद्देशा