Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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शब्दा
सूत्र |
भावार्थ
१ अनुवादक-बालब्रह्मचरिमनि श्री अमोलक ऋषिजी
च करने को च. चला उ. उदीरते को उ. उदीरा वे वेदते को वे चेदा ५० छोडते को ५० छोडा छि छेदते को छि छेदा भि भेदते को भि. भेदा द जलाते को द. जलाया मि० मरते को म.
भंते !चलमाणे चालए?उदीरिजमाणे उदीरिए? वेदिजमाणे वेदिए? पहेजमाणे पहीणे! उनकों को क्या चलही कहना ? + २ जो कर्म उदय में नहीं आये हैं, बहुत आगापिक काल में उदय में आरेंगे उनको शुभ अध्यवसाय से आकर्ष कर उदय में लाये उसे उदीरणा कहते हैं. इस तरह प्रश्न समय
में उदारणा करते को उदीरही क्या कहना! ३ कर्म उदय में आकर प्रथम समय में वेदते हो उन्हें क्या वेदेही कहना. ? ४ जो कर्म पुद्गल जीव के प्रदेश में अवलम्बन कर रहे थे वे पतन होने लगे उन्हे क्या ।
पनन हवा कहना ? . जो कर्म दीर्घकाल की स्थितिबाले थे उनका छेदन कर अल्प काल की स्थितिवाले । बनाय, इस तरह से प्रथम समय में छेदते को छेदा कहना ? ६ जो कर्म तीवरम देने वाले थे उनको मंद म देनेवाले बनाये इस तरह उसकों का प्रथम ममय भेदतेको भदे कहना.? ७ ध्यानरूप ज्वालामे कर्मरूप
__+ श्री मुधर्मा स्वामी ने मृध की आदि में अन्य अनेक प्रश्नों को छोडकर "चलमाण चालिए" यह । प्रश्न क्यों ग्रहण किया? ममाधान-धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष इन चारों को मापने में उधमश्रपट कहा है. चागं में में साक्ष श्रेष्ठ है वह कश्रय में होता है और कर्य श्नय अनुक्रम में होता है इनालयं प्रधान तु की मिद्धि के लिये र प्रथम ही"चलपाणे चलिए इमप्रउसमे निश्चय किया कि जिनके कर्म अपने अनादि स्वभावको मिद्धिम चचित,
हब उन को चले ही कहना मान प्राप्ति का प्रथम कार्य में यह दर्शाया है.
* प्रकाशक-राजावहादुर लाला सुववनदायनी मालापमादजी *
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