Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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शब्दार्थ न. नगर की ब० बाहिर उ० ईशान दि० दिशा में गु० गुणशिल णा० नामका चे० चैत्य हो० था त०
वहां से श्रोणिक राजा चि. चेलणादेवी ॥ १ ॥ते. उस का. काल ते. उस स. समय में स. श्रमण भ० भगवान् म० महावीर आ० आदिकर ति० तीर्थकर स० स्वयं संबुद्ध पु. पुरुषोत्तम पु० पुरुपसिंह
स्स णयरस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिलीभाए गुणासलए णामं चेइए होत्था तत्थ- 06 व णं सेणिए राया, चिलणादेवी ॥ १ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महा
वीरे-आदिगरे, तित्थगरे,सयंसंबुद्धे, पुरिसुत्तमे पुरिससीहे, पुरिसवर पुंडरीए,पुरिसवरगंधहभावार्थ
सुधर्मा स्वामी अपने पाटवीय शिष्य श्री जम्बूस्वामी को कहते हैं कि उसकाल उस समय में अर्थात् इस अवसर्पिणी काल के दुषम सुषम नामक चौथे आरेमें भगवन्तने इस कथाका उपदेश दिया तब राजगृह * } नामक नगर था. उसका वर्णन रायप्रसेणी सूत्र से जानना. उस राजगृही नगरी की ईशान के गुणशील नामक यक्ष का चैत्य ( विंब अथवा बिम्ब युक्त आयतन ) था. उस राजगृह में श्रेणिक राजा राज्य करता था, और उनको चेलणा नामक राणी थी. ॥१॥ उस काल उस समय में 90 श्रुत व चारित्र धर्म की आदि के करनेवाले, साधु साध्वी, श्रावक व श्राविका इन चार तीर्थ को।
* यद्यपि वर्तमान काल में राजगृह नामक नगर है तथापि अतीत काल जैसा अब नहीं है. अनंत 14 वर्णादिक के पुद्गलो का क्षय हुवा है, इसलिये यहां भूतकाल का प्रयोग किया है.
पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (मगवती) सूत्र
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384 पहिला शतकका पहिला उद्देशा 88487