Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
शब्दार्थ
पुरुषवर पुंडरीक पु० पुरुषवर गंधहस्ती लोलोकमें उत्तम लो० लोक के नाथ लो. लोक के हितकर्ता 45 लो• लोक में द्वीपसमान लो. लोकमें प० सर्यसमान अ० अभय देनेवाले च० चक्षुके देनेवाले म० मार्ग
देनेवाले जी. जीव देनेवाले रक्षक यो० बोधि देनेवाले ध० धर्मके देनेवाले ध० ध० धर्मके उपदेशक ध० धर्मके नायक ध० धर्मके सारथि ध. धर्ममें व. प्रधान चा० चातुरंत चक्रवर्ती दी. द्वीप ता. त्राण ___ थी, लोगुत्तमे, लोगनाहे, लोगहिए लोगपदीवे, लोग पजोयगरे, अभयदए, चक्खु
दए, मग्गदए, सरणदए, जीवदए, बोहिदए, धम्मदए, धम्मदसिए, धम्मनायगे, धम्म
सारहिए, धम्मवर चाउरंत चक्कवटी, दीवो ताण सरणगइपइटे, अप्पडिहयवरणाण १ भावार्थ स्थापनेवाले, अन्यके उपदेश विना स्वतःही हेय ज्ञेय उपादेय पदार्थ स्वरूप को जाननेवाले, रूपादि अतिशय
अथवा जात्यादिकके उच्चत्वसे पुरुषों में उत्तम, शौयगुणते पुरुषमें सिंह समान, सब अशुभ पाप रहित होनेसे पुरुषोंमें पुंडरीक कमल समान, पुरुषों में गंधहस्ती समान लोक में उत्तम, लोककेनाथ अर्थात् योग सो जिप्सको पहिले धर्म नहीं प्राप्त हुआहै उसको धर्म की प्राप्ति कराना और क्षेमसोधर्मकी प्राप्ति होनेपर मनको स्थिर रहनेदेना, इस तरह योग व क्षेम दोनों करनेवाले होनेसे लोकनाथ, पविध जीवनिकाय रूप लोक की रक्षा करने से हितकारी, संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवरूप लोकको द्वीपसमान, गणवरादिलोकको उद्योतके करनेवाले, अभय के दाता, श्रुतज्ञानरूप
१ आसन्न सिद्धिक मोक्षगामी सव भव्य जीव.
4.9 अनुबादरालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी *