Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अथ
* प्रयोजक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
द्वादश शतक का - सातवा उद्देशा.
-
४०० असंख्यात योजन का लोक है ... १७५० (४०१ संपूर्ण लोक जीव ने स्पर्शा दृष्टांत. १७५१ (४०२ सब लोक में जीव जन्म मरण करे हैं १७५३ १४०३ सब लोक के जीवों के साथ सज्जन दुर्जन
के सब प्रकार के संबंध जीवने किये १७५८ द्वादश शतक का आठवा उद्देशा. ४०४ देवता नाग में मणि में उत्पन्न हो पूजावे १७५९ (४०५ हिंसक जानवरों कुगति में जाते हैं १७६१ द्वादश शतक का - नववा उद्देशा (४०६ पांच देवों का थोकडा
. १७६३.
द्वादश शतक का दशबा उद्देशा. ४०७ आठ आत्माका परस्पर संबंध . १७७५ १४०८ आत्मा ज्ञान दर्शन है कि अन्य ज्ञान है १७८२ (४०९ आत्मा नरकादि दंडक हैं कि अन्य है १७८४ ४१० आत्मा बुद्गल स्कंध है कि अन्य है. १७८६
१२ त्रयोदश शतक का प्रथमोद्देशा.
४११ नरकावासे का प्रमाण जीवों की उत्पत्ति १७९६ ४१२ लेश्या स्थान पर वर्त नरक में जावे १८१० त्रयोदश शतक का दूसरा उद्देशा.
४१ ३ देवताओं के स्थान में उपजने निकलने १८१३ त्रयोदश शतक का तीसरा उद्देशा. ४१४ परिचारणा का संक्षेपित कथन १८२३ त्रयोदश शतक का चौथा उद्देशा. ४२५नीचे की नरक ऊपर की नरक विस्तरित १८२३ ४२६ तीनों लोक का मध्य विभाग ४२६ तीनों लोक का मध्य विभाग ४२७ दशों दिशा कि आदि कहां से ४२८ लोक किसे कहते हैं, पंचास्तिकाया ४२९ आस्तिकाया के परस्पर प्रदेशों ४३० लोक का संकोच विस्तार का कथन १८५४
...१८२३
... १८२९
१८३१
१८३३
१८३६
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* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी - ज्वालाप्रसादजी