Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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शब्दार्थ नमस्कार उ• उपाध्याय को ण नमस्कार लो लोकमें स० सर्व सा० साधुको ॥*॥ण नमस्कार बं ब्राह्मी ।
सव्वसाहणं ॥ * ॥ णमो बंभीए लिवीए ॥ * ॥ रायगिह, चलण, दुक्खे, कंखपअर्थात् जो सब भाव को जान व देख सकते हैं उन को अरहंत कहते हैं. ऐसे अरहंत भगवंत को नमस्कार होवो. इस का अरुहताणं व अरिहंताणं ऐसे दो पाठान्तर हैं. अष्टप्रकार के कर्मरूप शत्रुको हणनेवाले अरिहंत कहाते हैं. कर्मरूप बीज का क्षय होने से संसार में पुनःजन्म लेने का जिन को नहीं है इसलिये अरुहंत कहाते हैं; उनको नमस्कार होवो. सिद्ध भगवंत को नमस्कार होवो. वे कैसे हैं ? शुक्ल ध्यानरूप से अग्नि से अष्टप्रकार के कर्मों को दग्ध करके जो मोक्ष पहुंचे हैं उन्हें सिद्ध कहते हैं; उन को नमस्कार होवो. जिन शासन के उपदेशक, ज्ञानादि पंचाचार पालनेवाले, गच्छ के नायक, अष्ट संपदा के धारक, ऐसे श्री आचार्यको नमस्कार होवो. अग्यारह अंग व बारह उपांग स्वयं पठन करे, अन्य को पठन करावे, और चरण सत्तरी व करण सत्तरी पच्चीस गुणों से युक्त होवे ऐसे उपाध्याय को नमस्कार होवो. ज्ञानादिक से मोक्ष मार्ग साधे वैसे सब साधु को नमस्कार होवो. यहांपर “सवसाहणं "
पाठ में सव्य शब्दका प्रयोग करने से सामायिक विशेष, अप्रमत्तादिक, पुलाकादिक, जिन कल्पिक, परिलहार विशुद्ध कल्पिक, यथा लिंगादि कल्पिक प्रत्येक बुद्ध, स्वयंबुद्ध, व बुद्धबोधित प्रमुख गुणवंत साधु
ओं को भी ग्रहण कीये हैं उक्त पंच परमेष्ट्री मोक्षमार्ग के साहायक व परम उपकारी हैं * ब्राह्मी लिपिक
२० अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी 82
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी*