Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे प्रमुखाः देव्यस्तथैव-उदायनवदेव कूणिकाग्रमहिषी सुभद्रा वत् यावत्-विनयेन शुश्रूषमाणाः भगवन्तं पर्युपासते धर्मकथा प्रवर्तते धर्मकां शृण्वन्ति चेतिभावः, 'तए णं से उदायणे राया समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुट्टे उट्ठाए उठेइ, उद्वित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव नमं. सित्ता एवं वयासी' ततः खलु स उदायनो राजा श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अन्तिके-समीपे, धर्मम्-धर्मोपदेशं श्रुत्वा, निशम्य-हृदि अवधार्य, हृष्ट तुष्टः सन् उत्थया-उत्थानेन उत्तिष्ठति, उत्थाय श्रमणं भगवन्तं महावीरं त्रिकृत्व:-वारत्रयं यावत् दक्षिणावर्तन प्रदक्षिणां कृला शिरसावर्तेन मस्तके अनलिं कृत्वा वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा, एवं वक्ष्यमाणमकारेण अवादीत्-' एवमेयं भंते ! जाव से जहेयं तुब्मे वदह तिकटु' हे मदन्त ! एवमेतत् वर्तते, हे भदन्त ! तथैपज्जुवासंति, धम्मकहा' इसी प्रकार से कूणिक की अग्रमहिषीसुभद्रा के जैसे प्रभावती प्रमुख देवियों ने उदायनराजा के जैसा ही यावत्विनय-पूर्वक शुश्रूषायुक्त होकर भगवान् की पर्युपासना करने लगी
और धर्मकथा सुनी 'तए णं से उदायणे राया समणस्स भगवओ महाचीरस्स ऑतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुट्टे उट्टाए उढेइ, उद्वेत्तासमणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव नमंसित्ता एवं वयासी' इसके बाद उदायन राजाने श्रमण भगवान महावीर से धर्मका उपदेश सुनकर
और उसे हृदय में अवधारण कर हर्षित एवं संतुष्टचित्त होकर अपने स्थान से अपने आप उठे और उठकर उन्होंने श्रमण भगवान महावीर को तीन बार प्रदक्षिणापूर्वक दोनों हाथों का जोडकर उन्हें मस्तक नवाया-वन्दना की, नमस्कार किया-वंदना नमस्कार कर फिर उन्होंने प्रभु से इस प्रकार कहा-'एवमेयं भंते ! जाव से जहेयं तुम्भे वदत्तिજેમ, પ્રભાવતી આદિ રાણીઓએ પણ ઉદાયન રાજાની જેમ મહાવીર પ્રભુને વંદણ નમસ્કાર કર્યા અને વિનયપૂર્વક તેમની શુશ્રષા કરીને પર્યું પાસના ४२१। तभी यथा सांमजी. “तएणं से उदायणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हटतुढे उढाए उदेइ, उद्वेत्ता समणं भरावं महावीरं तिक्खुत्ता जाव नमंसित्ता एवं वयासी" श्रम समान महाવીરની સમીપે ધર્મોપદેશ શ્રવણ કરીને અને તેને હૃદયમાં અવધારણ કરીને ખૂબ જ હર્ષ અને સંતોષ પામેલા ઉદાયન રાજા પોતાના સ્થાનેથી પોતાની જાતે જ ઊભા થયા ઊભા થઈને તેમણે શ્રમણ ભગવાન્ મહાવીરને ત્રણ વાર પ્રદક્ષિણપૂર્વક અને હાથ જોડીને વંદણ કરી, નમસ્કાર કર્યા વંદણનમસ્કાર सुशन भारी महावीर प्रभुने मा प्रमाणे ह्यु-" एवमेयं भंते ! जाव से जहेयं
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧