Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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नियुक्ति, चूर्णि और वृत्ति में जिन निर्देशों का सूचन किया गया है, उससे यह स्पष्ट है कि आचार-चूला आचारांग से उद्धृत नहीं है अपितु आचारांग के अति संक्षिप्त पाठ का विस्तार पूर्वक वर्णन है। प्रस्तुत तथ्य की पुष्टि आचारांग नियुक्ति से भी होती है। आचाराग्र में जो अग्र शब्द आया है वह वहाँ पर उपकाराग्र के अर्थ में है। आचारांग चूर्णि में उपकाराग्र का अर्थ पूर्वोक्त का विस्तार और अनुक्त का प्रतिपादन करने वाला होता है। आचारान में आचारांग के जिस अर्थ का प्रतिपादन है, उस अर्थ का उसमें विस्तार तो है ही, साथ ही उसमें अप्रतिपादित अर्थ का भी प्रतिपादन किया गया है। इसीलिए उसको आचार में प्रथम स्थान दिया गया है।
आचारांग के रचयिता
___ आचारांग के प्रथम वाक्य से ही यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि इस अर्थ के प्ररूपक तीर्थंकर महावीर थे और सूत्र के रचयिता पंचम गणधर सुधर्मा । यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि भगवान् अर्थ रूप में जब देशना प्रदान करते हैं तो प्रत्येक गणधर अपनी भाषा में सूत्रों का निर्माण करते हैं। भगवान महावीर के ग्यारह गणधर थे और नौ गण थे। ग्यारह गणधरों में आठवें और नौवें तथा दशवें और ग्यारहवें गणधरों की वाचनायें सम्मिलित थीं, जिस के कारण नौ गण कहलाये। भगवान् महावीर के समय इन्द्रभूति और सुधर्मा को छोड़कर शेष गणधरों का निर्वाण हो चुका था। भगवान् महावीर के निर्वाण के पश्चात इन्द्रभूति गौतम को केवलज्ञान प्राप्त हो गया। जिसके कारण वर्तमान में जो अंग-साहित्य उपलब्ध है वह सुधर्मा स्वामी की देन है।
आचारांग के दो श्रुतस्कन्ध हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध का नाम आचार या ब्रह्मचर्य तथा नव ब्रह्मचर्य ये नाम उपलब्ध होते हैं। ब्रह्मचर्य नाम तो है ही ! किन्तु नौ अध्ययन होने से नव ब्रह्मचर्य के नाम से भी यह प्रथम श्रुतस्कन्ध प्रसिद्ध है। विज्ञों की यह स्पष्ट मान्यता है कि प्रथम श्रुतस्कन्ध सुधर्मा स्वामी द्वारा रचित ही है किन्तु द्वितीय श्रुतस्कन्ध के रचयिता के सम्बन्ध में : उनका कहना है कि वह स्थविरकृत है। २ स्थविर का अर्थ चूर्णिकार ने गणधर किया है और आचार्य शीलांक ने चतुर्दशपूर्वविद् किया है। किन्तु स्थविर का नाम उल्लिखित नहीं है। यह माना जाता है कि प्रथम श्रुतस्कन्ध के गम्भीर रहस्यों को स्पष्ट करने के लिए भद्रबाहु स्वामी ने आचारांग का अर्थ आचाराग्र में प्रविभक्त किया।
सहज ही जिज्ञासा हो सकती है कि पांचों चूलाओं के निर्माता एक ही व्यक्ति हैं या अलग-अलग व्यक्ति हैं ? क्योंकि आचारांग नियुक्ति में स्थविर शब्द का प्रयोग बहुवचन में हुआ है । जिससे यह ज्ञात होता है कि उसके रचयिता अनेक व्यक्ति होने चाहिये। समाधान है कि स्थविर' शब्द का बहुवचन में जो प्रयोग हुआ है वह सम्मान का प्रतीक है। पाँचों की चूलाओं के रचयिता एक ही व्यक्ति हैं।
आचारांग चूर्णि में वर्णन है कि स्थूलिभद्र की बहन साध्वी यक्षा महाविदेह-क्षेत्र में भगवान् सीमंधर स्वामी के दर्शनार्थ गयी थीं। लौटते समय भगवान् ने उसे भावना और विमुक्ति ये दो अध्ययन दिये । आचार्य हेमचन्द्र ने परिशिष्ट पर्व में यक्षा साध्वी के प्रसंग का चित्रण करते हुए लिखा है कि भगवान् सीमंधर ने भावना और विमुक्ति, रतिवाक्या (रतिकल्प) और विविक्तचर्या के चार अध्ययन प्रदान किये। संघ ने दो अध्ययन आचारांग की तीसरी और चौथी चूलिका के रूप में और अन्तिम
आचारांग नियुक्ति गाथा २८६ आचारांग नियुक्ति गाथा २८७ आचारांग चूर्णि, पृष्ठ ३२६ आचारांग वृत्ति, पत्र २९० आचारांग नियुक्ति, गाथा २८७ आचारांग चूर्णि, पृष्ठ १८८ परिशिष्ट पर्व - ९।९७-१०० पृष्ठ-९०
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