Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University

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Page 18
________________ [11] वि० सं० 974 = 917 ई० के फतेहपुर जिले के असनी नामक गाँव से प्राप्त अभिलेख में परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्री महीपालदेव के 'विजयराज्य' का उल्लेख है।। विनायक महीपाल के महोदयनगर से प्रकाशित एशियाटिक सोसायटी ताम्रफलकाभिलेख2 से यह प्रमाणित है कि प्रतिष्ठान भुक्ति का वाराणसी विषय वि० सं० 988 = 931 ई० में उसके अधिकार में था। अत: 931 ई० में महीपाल अवश्य सत्तासीन था। ग्वालियर में चन्देरी स्थित रखेत्र नामक स्थान से प्राप्त (आस रि० 1924-25, पृष्ठ - 168) वि० सं० 1000= 943 ई० के एक दूसरे अभिलेख से उन प्रदेशों पर भी उसके शासन की पुष्टि होती है। इस प्रकार 943 ई० में भी महीपाल का शासन था। महीपाल के समय के प्रतापगढ़ के अन्तिम अभिलेख पर 948 ई० अंकित है। विभिन्न अभिलेखों के आधार पर महीपाल का समय लगभग 910 ई० से 948 ई० माना जा सकता है। उसका उल्लेख करने वाले आचार्य राजशेखर भी इसी काल में थे। युवराजदेव प्रथम के शासनकाल में आचार्य राजशेखर : कलचुरी राजवंश के युवराजदेव प्रथम का भी आचार्य राजशेखर द्वारा उल्लेख है। यह युवराजदेव 'केयूरवर्ष' महेन्द्रपालदेव के पुत्र महीपालदेव के समकालीन थे। बिलहरी ग्राम में प्राप्त शिलालेख के आधार पर उनका शासनकाल 910 ई० से 948 ई० ज्ञात होता है 4 आचार्य राजशेखर की 1. "Rajshekhar lived about 900 A.D. Now fleet has shown that this Mahipala must be identified with the king Mahipala of the Asni inscription, dated Vikrama Samvat 974 = A.D. 917, and has thus proved that Rajshekhar lived at the beginning of the tenth century A.D." ___ 'Rajshekhar's Karpurmanjari' Page - 177 (S.Konow, C.R. Lanman) 2 (इण्डियन एण्टीक्वेरी, जिल्द 15, पृष्ठ - 138-141) 3 इण्डियन एण्टीक्वेरी, जिल्द - 14, पृष्ठ - 122, पादटिप्पणी। 4. एपिग्राफिका इण्डिका, जिल्द-1, पृष्ठ - 252, पादटिप्पणी।

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