Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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(4) उनके पुत्र देवपाल A.D. 948.1
इस प्रकार विभिन्न शिलालेखों के आधार पर महेन्द्रपाल का समय 890 ई० से 910 ई० तक
स्थिर किया गया है।
अन्तः साक्ष्य भी आचार्य राजशेखर को गुर्जरप्रतिहारवंशी महेन्द्रपाल का गुरू सिद्ध करते हैं। आचार्य राजशेखर ने सबसे पहले 900 ई० के आस पास 'कर्पूरमञ्जरी' सट्टक की रचना की। इसकी प्रस्तावना में उन्होंने स्वयं को महेन्द्रपाल अथवा निर्भयराज का गुरू बताया है ।2 कर्पूरमञ्जरी का चण्ड या चन्द्रपाल सम्भवतः महेन्द्रपाल ही है। कर्पूरमञ्जरी के बाद आचार्य राजशेखर ने 'बालरामायण' की रचना की और तत्पश्चात् 'बालभारत' की। इन नाटकों के नाम का 'बाल' शब्द इनको कवि के काव्यरचना काल की प्रारम्भिक रचना नहीं सिद्ध करता क्योंकि 'बालरामायण' में राजशेखर ने अपने लिए 'कविवृषा' शब्द का प्रयोग किया है । 'बालरामायण' नामक नाटक रघुकुलतिलक महेन्द्रपालदेव की सभा के समक्ष प्रस्तुत किया गया था। इस नाटक में महेन्द्रपाल की सुस्थिर राज्यलक्ष्मी का वर्णन
"Keilhorn's summing up of the names of the four sovereigns of Mahodaya or Kanyakubja or Kannauj as presented to us by the Siyadoni Inscription together with their known dates, may here be repeated for the reader's convenience from Epigraphica Indica, 171; 1-Bhoja A.D. 862,876 and 882. 2-Mahendrapala or Nirbhay Narendra or Mahishpala A.D. 903 and 907; Pupil of the poet Rajshekhar. 3-His son Ksitipala or Mahipala or Herambapala A.D. 917; Patron of Rajshekhar. 4–His son Devapala A.D. 948." "Rajshekhar's Karpurmanjari' Rajshekhar's life Page - 177 (S. Konow, C.R.
Lanman) 2 "बालकई कइराओ णिभअराअस्स तह उवज्झाओ"
(कर्पूरमञ्जरी ।-90 3 'निखिलेऽस्मिन् कविवृषा"
('बालरामायण' प्रथम अङ्क - श्लोक ।।
।।